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________________ वर्ग ६ अध्ययन ३ - अर्जुन अनगार की मुक्ति १४६ 水水水水水来来来来来来来来来图来样本中中中中中中中中中中來來來來來來來來來來來來來來來來來來 धर्माचार्यजी ने महती अनुकम्पा कर मुझे चतुर्विध संघ में सम्मिलित किया। हत्यारे को वंदनीयपूजनीय बनाया। अब यदि मैं इस परीषह को नहीं जीत पाऊंगा तो प्रभु मुझे सपूत नहीं गिनेंगे।' ज्ञानी फरमाते हैं - 'यदि कोई मुनि को कठोर वचन कहे तो मुनि सोचे कि इसने पीटा तो नहीं है, पीटे तो सोचे - मेरे प्राण तो नहीं लिये हैं, कोई प्राण भी ले ले तो यह सोचे कि मेरा धर्मधन तो नहीं लूटा, समकित रत्न तो नहीं खसोटा। यह मेरा उपकारी ही है - "कटु बोला पीटा नहीं, लिए न मेरे प्राण। धर्म-धन लूटा नहीं, यह है बंधु महान्॥" क्षमाश्रमण अर्जुन अनगार ने तन्मयता से भिक्षाचर्या की। लोगों के आक्रोश से घबरा कर एक दो घर जाकर ही लौट आते, तो वे परीषहजयी नहीं कहलाते। लोगों द्वारा कुछ भी कहा जाय या मारा-पीटा जाय, मेरी आत्मा मेरे पास है, उनकी सुरक्षा व्यवस्था मुझे करनी है। बहुधा व्यक्ति दूसरों के व्यवहार से शीघ्र प्रभावित हो जाता है। प्रेम करने वाले से प्रेम, द्वेषी के साथ द्वेष, प्रशंसक पर अनुराग, निंदक पर अशुभभाव एवं क्रोधी पर क्रोध, यह जन-जीवन की सामान्य पद्धति है, इसी कारण असमाधि एवं अशांति के अंधड़ उठते रहते हैं। यदि कोई दूसरों के व्यवहार से सर्वथा अप्रभावित रह सके तो वह निश्चय ही अर्जुन अनगार की भांति अपनी आत्म-शांति कायम रख सकता है। दूसरे के पांव में चुभा हुआ कांटा हमें पीड़ा नहीं पहुंचा सकता है। अर्जुन अनगार ने दो दिन की प्रव्रज्या-पर्याय में ही काया-कल्प कर दिया। उनकी ईर्यासमिति एवं आचार-विधि की तुलना आगमकार गौतमस्वामी के साथ की है। उनकी आहार में अमूर्छा की उपमा सर्प के बिल प्रवेश से दी जाती है। सर्प बिल में घुसते हुए बहुत सावधान व सीधा रहता है। कांटों की बाड़ में उनकी कोमल काया किस कौशल से निकलती है, यह प्रशंसा का विषय है। अर्जुन अनगार की मुक्ति (७४) तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाई रायगिहाओ णयराओं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिं जणवयविहारं विहरइ। तए णं से अज्जुणए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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