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________________ १४४ ********* अन्तकृतदशा सूत्र *************************************************** प्राणीवध के निमित्त से कर्मदलिक बहुत बांध लिये हैं, यह बात स्वयं से अज्ञात नहीं थी अतः कर्म कर्ज से मुक्त होने के लिए अर्जुन अनगार ने जिस दिन दीक्षा ली, उसी दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में वंदना नमस्कार करके प्रभु की साक्षी से इस प्रकार अभिग्रह धारण किया - _ "मुझे जीवन पर्यन्त तक बिना बीच में छोड़े बेले-बेले का तप कर्म करना और आत्मा को तप संयम से भावित करना कल्पता है। मैंने मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय एवं अशुभ योगों से जिन कर्मों का बंधन किया है, उन्हें अब मैं तप की अग्नि में संवर की वायु से प्रज्वलित करके भस्मीभूत कर दूंगा।" शरीर कृश है, उठने बैठने की शक्ति नहीं है लगभग साढ़े पांच महीने से आहार पानी नहीं मिला है पहले कुछ दिन खा पी लूं - ऐसा विचार तक नहीं करके आत्म-समर के कुरुक्षेत्र में अर्जुन महाराज कर्म सैन्य को नष्ट करने का विचार करने लगे और ऐसा महान् सिंह संकल्प ग्रहण करके जीवन भर तक बेले-बेले पारणे करने में जुट गए। .. अर्जुन अनगार को उपसर्ग तए णं से अज्जुणए अणगारे छट्टक्खमणपारणयंसि पढमपोरिसीए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी जाव अडइ।. भावार्थ - उसके बाद अर्जुन अनगार ने बेले के पारणे के दिन पहले प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर में ध्यान किया और तीसरे प्रहर में गौतम स्वामी के समान गोचरी गये। तए णं तं अज्जुणयं अणगारं रायगिहे णयरे उच्चणीय जाव अडमाणं बहवे इथिओ य पुरिसा य डहरा य महल्ला य जुवाणा य एवं वयासी - “इमेणं मे पिया मारिए, इमेणं मे माया मारिया, भाया मारिए, भगिणी मारिया, भज्जा मारिया, पुत्ते मारिए, धूया मारिया, सुण्हा मारिया, इमेणं मे अण्णयरे सयणसंबंधिपरियणे मारिए" त्ति कटु अप्पेगइया अक्कोसंति, अप्पेगइया हीलंति, जिंदंति, खिसंति, गरिहंति, तज्जेंति, तालेति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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