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________________ १४२ अन्तकृतदशा सूत्र 來來來來***************************************************來 इसलिए हे भगवन्! मैं आपसे दीक्षा अंगीकार करना चाहता हूँ।' भगवान् ने कहा - 'हे देवानुप्रिय! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो वैसा करो।' भगवान् के ये वचन सुन कर अर्जुन माली ईशान कोण में गये और स्वयमेव पंचमुष्ठि लोच कर के अनगार बन गये। विवेचन - अर्जुन को यक्ष-निष्कासन से बहुत पीड़ा का अनुभव हुआ। इतने दिन तो . शरीर देव-प्रभाव के कारण चल रहा था, पर भोजन किए महीनों हो गए थे, अतः कमजोरी भी विशेष अनुभव होने लगी। अर्जुन ने सुदर्शन से जो संवाद किया, उससे सुदर्शनजी का निरभिमानता का गुण उजागर होता है। दूसरा कोई होता तो कह बैठता - 'नालायक कहीं का! मुझे मारने आया और अब मेरा परिचय पूछता है? सैकड़ों पुरुषों और स्त्रियों को मौत के घाट उतारतें तुझे शर्म नहीं आई? तू भगवान् के दरबार में मुंह दिखाने लायक नहीं है। तुझे साथ ले जाना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।' सुदर्शन का राजगृह से निष्क्रमण लोग अपनी छतों पर चढ़े हुए देख रहे थे। जब जनता ने (अदृश्य देव के हाथों) मुद्गर को यक्षायतन की ओर जाते देखा, तो राजगृह में हर्ष की लहर . व्याप्त हो गई। फिर तो लोगों के समूह के समूह भगवद्पर्युपासना के लिए पहुंच गए। ____धर्म द्वार में आकर पापी के पापों का प्रक्षालन हो जाता है। वीतराग के दरबार में धर्मदेशना की वर्षा सब पर समान होती है। · अर्जुन अधर्मी से धर्मी बन गया था। सुदर्शन से प्रभावित अर्जुन पर प्रभु की देशना का अमोघ प्रभाव हुआ। वह वहीं दीक्षित हो गया। पापपंक में फंसा हुआ अर्जुन परमेष्ठी का अंग बन गया। सुदर्शन भगवान् के दर्शन करने रवाना हुए तब स्नानादि कर वस्त्र-विभूषा आदि की। यह उनका लौकिक आचार था। धर्म के साथ स्नान का कोई संबंध नहीं है। अर्जुन द्वारा सैकड़ों जीवों की हत्या हुई थी तथा वे सीधे प्रभु की सेवा में आये थे। दीक्षा के पूर्व उन्होंने स्नान भी नहीं किया था। मस्तक की चारों दिशा में तथा ऊपर की तरफ से बालों का लुंचन ‘पंचमुष्टी लोच' कहा जाता है। केवल पांच बार में ही सिर के सारे बालों का लोच हो जाना' यह कोई प्रामाणिक अर्थ नहीं है। श्री सूयगडांग सूत्र अ० ७ गाथा १० में जन्म के केश नहीं काटे हुए बालक के लिए 'पंचसिहा कुमारा-पांच शिखाओं वाला कुमार' शब्दों का व्यवहार हुआ। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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