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________________ वर्ग ६ अध्ययन ३ - भगवान् की पर्युपासना और दीक्षा १४१ ********************** इच्छामि णं देवाणुप्पिया! अहमवि तुमए सद्धिं समणं भगवं महावीरं वंदित्तए जाव पज्जुवासित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिया!॥" ____भावार्थ - यह सुन कर अर्जुन माली, सुदर्शन श्रमणोपासक से इस प्रकार बोला - 'हे देवानुप्रिय! मैं भी तुम्हारे साथ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार करने यावत् पर्युपासना करने के लिए चलना चाहता हूँ।' सुदर्शन श्रमणोपासक ने कहा - 'हे देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो।' .. ___ तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं समणं भगवं महावीरं तिक्षुत्तो जाव पज्जुवासइ। तएणं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स समणोवासयस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स तीसे य धम्मकहा सुदंसणे पडिगए। . भावार्थ - इसके बाद सुदर्शन श्रमणोपासक, अर्जुन माली के साथ गुणशीलक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आये और तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिण पूर्वक वन्दननमस्कार कर सेवा करने लगे। भगवान् महावीर स्वामी ने उन दोनों को धर्म-कथा सुनाई। धर्मकथा सुन कर सुदर्शन श्रमणोपासक अपने घर चले गये। तए णं से अज्जुणए मालागारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ एवं वयासी - "सद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं जाव अब्भुढेमि।" अहासुहं देवाणुप्पिया! तए णं से अज्जुणए मालागारे उत्तरपुरथिमे दिसिभाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता जाव अणगारे जाए जाब विहरइ। ___ कठिन शब्दार्थ - णिसम्म - धारण कर, सद्दहामि - श्रद्धा करता हूं, णिग्गंथं पावयणंनिग्रंथ प्रवचन, अवक्कमइ - जाता है, पंचमुट्ठियं - पंचमौष्टिक, लोयं - लोच। . भावार्थ - इसके बाद अर्जुन माली श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी से धर्म-कथा सुन कर और हृदय में धारण कर के हृष्ट-तुष्ट-हृदय से इस प्रकार बोला - 'हे भगवन्! आप द्वारा कही हुई धर्म-कथा सुन कर मुझे उस पर श्रद्धा हुई है। मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचनों पर श्रद्धा करता हूँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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