________________
१३८
अन्तकृतदशा सूत्र *****来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来*********************** अर्जुन माली का शरीर छोड़ दिया और हजार पल के लोहमय मुद्गर को ले कर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सेठ सुदर्शन की धर्मश्रद्धा एवं दृढ़ता का फल दर्शाया गया हैं। सेठ सुदर्शन को देख कर अर्जुन माली ने अपना मुद्गर उछाला तो सही पर वह आकाश में अधर ही रह गया। सुदर्शन की आत्म शक्ति की तेजस्विता के कारण वह किसी भी प्रकार से प्रत्याघात नहीं कर पाया। सूत्रकार ने इस हेतु 'तेयसा समभिपडित्तए' पद का प्रयोग किया है। सुदर्शन श्रमणोपासक की आध्यात्मिक तेजस्विता के कारण मुद्गरपाणि यक्ष उस .पर आघात नहीं कर पाया और वह स्वयं तेजोविहीन हो गया। सुदर्शन के असाधारण तेज से पराभूत मुद्गरंपाणि यक्ष अर्जुनमाली के शरीर में से भाग गया।
उपसर्ग मुक्त तए णं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं विप्पमुक्के समाणे धसत्ति धरणियलंसि सव्वंगेहिं णिवडिए। . . तएणं से सुदंसणे समणोवासए णिरुवसग्गमिति कटु पडिमं पारेइ।
कठिन शब्दार्थ - विप्पमुक्के - मुक्त होने पर, धरणियलंसि - पृथ्वी तल पर, सव्वंगेहिं - सर्वांग, णिवडिए - गिर पड़ा, णिरुवसग्गमिति कट्ट - उपसर्ग रहित हुआ जान कर, पडिमं - प्रतिज्ञा को, पारेइ - पाला। ..
भावार्थ - अर्जुन माली उस मुद्गरपाणि यक्ष से मुक्त होते ही 'धस' इस प्रकार के शब्द के साथ पृथ्वी पर गिर पड़ा।
सुदर्शन सेठ ने अपने आपको उपसर्ग-रहित जान कर अपनी प्रतिज्ञा को पारी (और उस पड़े हुए अर्जुन माली को सचेष्ट करने के लिए प्रयत्न करने लगे)।
_ विवेचन - लोकमत हमेशा विभाजित रहा है। सुदर्शन श्रावक को इस परिस्थिति में प्रभु दर्शन के लिए जाते देख कर दो मुँही दुनियाँ दो प्रकार से बोल रही थी। धर्मी लोग कह रहे थे'धन्य है सुदर्शन श्रावक के धर्म-प्रेम को! इस जानलेवा उपसर्ग से भी इसे डर नहीं है। यह अवश्य ही हमारे लिए भी प्रभु दर्शन के मंगलमय द्वार खोलेगा।'
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org