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वर्ग ६ अध्ययन ३ - भ. महावीर स्वामी का राजगृह पदार्पण १३१ ******朱林林不來本來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 विनिश्चय करके धारणाओं को संशय रहित कर लिया था, उनकी अस्थि एवं अस्थि की मिजा तक धर्म का प्रशस्त प्रेम - अनुराग रंजित था, उनकी नस-नस में जैन धर्म रमा हुआ था।
अयमाउसो। णिग्गंथे पावयणे अयं अहे अयं परमहे सेसे अणटे
- आपस में मिलने पर उनकी अभिवादन विधि निम्न शब्दों से होती थी - 'हे देवानुप्रियो! यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन ही अर्थ है, यही परमार्थ है, शेष अनर्थ है।'
उसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउरघरम्पवेसा
- दान देने के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे, किसी के अन्तःपुर में जाने पर भी उनके प्रति अविश्वास नहीं था, ऐसे दृढ़ धर्मी थे। .. _____ बहूहिं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं चाउद्दसहमुद्दिपुण्णमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछणेणं पीढफलगसेज्जासंथारएणं ओसहभेसज्जेण य पडिलाभेमाणा अहापडिग्गहएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। - - बहुत से शीलव्रत, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषध, उपवास, चतुर्दशी, अष्टमी, पूर्णिमा आदि तिथियों को प्रतिपूर्ण पौषध का सम्यक् पालन आदि धार्मिक अनुष्ठान करते थे। साधुसाध्वियों को अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, पीढ़, फलक शय्या, संस्तारक, औषध, भेषज आदि का दान करते हुए अपनी शक्ति मुजब यथागृहीत तप कर्म से आत्मा को.भावित करते हुए विचरते थे।
सुदर्शन श्रमणोपासक भी उपरोक्त गुणों वाले श्रावक-रत्न थे। __ भगवान् महावीर स्वामी का राजगृह पदार्पण
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे जाव विहरइ। तए णं रायगिहे णयरे सिंघाडग जाव महापहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए?
कठिन शब्दार्थ - महापहेसु - महापथों पर, एवं - इस प्रकार, आइक्खइ - कहने लगे, किमंग - क्या कहना, विउलस्स - विपुल, अट्ठस्स - अर्थ के, गहणयाए - ग्रहण करने से। . .
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