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________________ १२८ अन्तकृतदशा सूत्र 来来来来********************本本本來來來來平平平平平平平平平平平平赫本本來 श्री दशाश्रुतस्कन्ध दसवीं दशा में साध्वियों द्वारा पुरुषपना पाने के लिए निदान किए जाने का वर्णन मिलता है। वे निदान करती है - 'दुक्खं खलु इत्थित्तणए, दुरसंचराइं गामंतराइं जाव सन्निवसंतराइं, से जहा नामए - अंबपेसियाइ वा माउलुंगपेसियाइ वा अंबाडगपेसियाई वा मंसपेसियाइ वा उच्छुखंडियाइ वा संबलिफलियाइ वा बहुजणस्स आसायणिज्जा पत्थणिज्जा पीहणिज्जा अभिलसणिज्जा एवामेव इत्थियावि बहुजणरस आसायणिज्जा जाव अभिलसणिज्जा, तं दुक्खं खलु इत्थित्तं पुमत्तणयं साहु।' अर्थ - स्त्रीपने में तो दुःख ही है, वे कहीं भी अकेली दूसरे गांव आदि नहीं जा पाती हैं। आम की फांक, तरबूजे की फांक, अंबाडग की फांक, सांठे की गंडेरी और सिंबलि की फली आदि स्वादिष्ट वस्तुएं जैसे देखते ही बहुत-से लोगों द्वारा स्वाद लेने योग्य, चाहने योग्य, प्राप्त करने योग्य व अभिलाषा योग्य होती है, वैसे ही स्त्रियाँ भी बहुत लोगों द्वारा चाहने योग्य यावत् अभिलाषा योग्य होती है। अतः स्त्रीपने में दुःख है, सुख तो पुरुषपने में है। ... ___ बंधुमती यदि अर्जुन के साथ पुष्प संचयन के लिए नहीं जाती, तो गोठीले पुरुषों को वैसे चिन्तन का निमित्त नहीं मिलता। बंधुमती को देख कर मित्र-मंडली के सदस्यों की नीयत बुरी हो गई। ___ गोठीले पुरुष आढ्य यावत् अपराभूत थे। राजा श्रेणिक की उन पर मेहरबानी थी। उनके अन्तःपुर में सुन्दर पत्नियाँ नहीं होने का कोई कारण नहीं है। वे चाहते तो और भी विवाह कर सकते थे। उन्होंने बंधुमती पर नीयत बिगाड़ी वह भी एक धार्मिक स्थान पर तथा पति के सामने, यह जघन्य काण्ड कितना बीभत्स हुआ? .. अपराधी अपने कृत्यों को अपराध नहीं मानता। वे छहों पुरुष ऐसा करने को उचित एवं श्रेयस्कर मानते हैं, एक दूसरे की सलाह पूर्वक षड्यंत्र रचते हैं। ‘परायी थाली में घी ज्यादा दिखता है।' परस्त्रीगमन के मूल में यह लोकोक्ति रही हुई है। पर इसका परिणाम क्या हुआ? मुद्गर के द्वारा किस निदर्यता से उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया? संभावित परिणामों से अपराध करने वाला अनजान नहीं होता है, उसकी अन्तरात्मा उसे बार-बार रोकती है - टोकती है, आवाज देती है, पर सुना अनसुना करके अपराधी अपराध करता रहता है। ___चूंकि अपराधी समाज में रहता है, अतः उसके वैयक्तिक व्यवहार से समाज भी अप्रभावित नहीं रह पाता। गोठीले पुरुष तो मारे ही गए, पर इस निमित्त से सैकड़ों निरपराध स्त्री-पुरुषों की हत्याएं हो गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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