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________________ वर्ग ६ अध्ययन ३ - श्रेणिक की उद्घोषणा १२७ ************************************************************* वैसे वर्तमान में उपलब्ध अंतगड सूत्र बहुत संक्षिप्त रह गया है। इस सूत्र में अनेक पद विलुप्त हो गए हैं। अंतगड सूत्र में कुल २३०४००० पद होने का उल्लेख मिलता है। (देखेंनन्दी सूत्र - पूज्य घासीलालजी म. सा. द्वारा संपादित) जबकि अभी उपलब्ध अंतगडसूत्र में मात्र ६०० पद ही हैं। इससे यह भी संभावित है कि - सैन्य बल प्रयोग आदि का संबंधित वर्णन विलुप्त सूत्रों में रहा हो - जो बाद में काल आदि प्रभाव से विच्छेद हो गए। तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - ‘एवं खलु देवाणुप्पिया! अजुणए मालागारे जाव घाएमाणे विहरइ। तं माणं तुब्भे केइ तणस्स वा कट्ठस्स वा पाणियस्स वा पुप्फफलाणं वा अट्ठाए सई णिगच्छउ। मा णं तस्स सरीरस्स वावत्ती भविस्सई' त्ति कटु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणं घोसेह, घोसित्ता खिप्पामेव ममेयं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। . कठिन शब्दार्थ - तणस्स - तृण के, कट्ठस्स - काठ के, पाणियस्स - पानी के, पुप्फफलाणं - फल-फूल के, वावत्ती - विनाश। . . भावार्थ - यह समाचार सुन कर राजा श्रेणिक ने अपने सेवक-पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा - "हे देवानुप्रिय! राजगृह नगर के बाहर अर्जुन माली प्रतिदिन एक स्त्री और छह पुरुष :- इस प्रकार सात व्यक्तियों को मारता है। इसलिए तुम सारे नगर में मेरी आज्ञा इस प्रकार घोषित करो किं - 'यदि तुम लोगों को इच्छा जीवित रहने की हो, तो तुम लोग घास के लिए, लकड़ी के लिए, पानी के लिए और फल-फूल के लिए राजगृह नगर के बाहर मत निकलो। यदि तुम लोग कहीं बाहर निकले, तो ऐसा न हो कि तुम्हारे शरीर का विनाश हो जाय।' हे देवानुप्रियो! इस प्रकार दो-तीन बार घोषणा कर के मुझे सूचित करो।" ____ इस प्रकार राजा की आज्ञा पा कर मेवक-पुरुषों ने राजगृह नगर में घूम-घूम कर उपरोक्त घोषणा की। घोषणा कर के राजा को सूचित कर दिया। विवेचन - सामाजिक जीवन में अनुचित व्यवहार के लिए कतई अवकाश नहीं है। जब भी भावुकता में आ कर श्रेणिक सरीखे विवेकी राजा भी ललिता-गोष्ठी को मनमाने व्यवहार की छूट देते हैं, तो उसके परम्पर परिणाम कहाँ तक पहुँचते हैं, यह उपरोक्त कथानक में आया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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