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________________ वर्ग ६ अध्ययन ३ ललित गोष्ठी की स्वच्छंदता ************************************************ - *************jjjj पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छ, वागच्छित्ता पुप्फुच्चयं करेइ, करित्ता अग्गाई वराइं पुप्फाई गहाइ, गहित्ता जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चयणं करेइ, करित्ता जाणुपायपडिए पणामं करेइ, करित्ता तओ पच्छा रायमग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ । कठिन शब्दार्थ - बालप्पभिड़ं बचपन से ही, भत्ते भक्त अनन्य उपासक, कल्लाकल्लिं - प्रतिदिन (नित्य), पच्छिपिडगाई - बांस की पिटारियाँ - छाबडियाँ, अग्गाईअग्र - सबसे बड़े, श्रेष्ठ जाति के, वराई - सबसे श्रेष्ठ, पुप्फाई - फूलों को, पुप्फच्चयणंपुष्पार्चन, जाणुपायपडिए दोनों घुटने नमा कर, रायमगंसि राजमार्ग पर, वित्ति वृत्ति - आजीविका । - Jain Education International श्रेष्ठ भावार्थ वह अर्जुनमाली बाल्य-काल से ही उस मुद्गरपाणि यक्ष का भक्त था और प्रतिदिन बेंत की बनी हुई चंगेरी ले कर राजगृह नगर से बाहर - अपने बगीचे में जाता था और फूलों को चुन-चुन कर इकट्ठा करता था। फिर उन फूलों में से अच्छे-अच्छे बढ़िया फूल ले कर मुद्गरपाणि यक्ष की प्रतिमा के आगे चढ़ाता था। इस प्रकार वह उसकी पूजा करता था और भूमि पर दोनों घुटने टेक कर प्रणाम करता था। इसके बाद राजमार्ग के किनारे बैठ कर फूल बेचता था। इस प्रकार आजीविका करता हुआ वह सुख पूर्वक जीवन बिताता था । ललित गोष्ठी की स्वच्छंदता - तत्थ णं रायगिहे णयरे ललिया णामं गोट्ठी परिवसइ अड्डा जाव अपरिभूया जं कयसुकया यावि होत्था । १२१ कठिन शब्दार्थ - ललिया - ललिता (ललित), गोट्ठी गोष्ठी कयसुकया- यत्कृत सुकृता- जो करते उसे अच्छा किया माना जाता । भावार्थ उस राजगृह नगर में 'ललित' (ललिता ) नाम की एक गोष्ठी (मित्र-मंडली ) रहती थी, जो अत्यन्त समृद्ध और अन्यकृत पराभवों से रहित थी । किसी समय राजा का कोई कार्य सम्पादित करने के कारण राजा ने उन पर प्रसन्न हो कर यह वचन दिया था कि 'वे For Personal & Private Use Only - - - मित्र मण्डली, जं www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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