SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग ५ अध्ययन १ - पद्मावती का दीक्षा-महोत्सव १०७ 本中 ****************來來來來來來來來來來來來來來來來來來來**************** णयरीए मज्झंमज्झेणं णिगच्छइ, णिगच्छित्ता जेणेव रेवयए पव्वए जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयं ठवेइ, पउमावई देवी सीयाओ पच्चोरुहइ। - कठिन शब्दार्थ - पट्टयं - पाट पर, अट्ठसएणं - एक सौ आठ, सोवण्णकलसेणं - स्वर्णकलशों से, अभिसिंचइ - अभिषिक्त किया, सव्वालंकार विभूसियं - सर्व अलंकारों से विभूषित, पुरिससहस्सवाहिणीं - हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली, सिवियं - शिविका (पालकी), रेवयए - रैवतक, पव्वए - पर्वत, ठवेइ - नीचे रखी, सिवियाओ - शिविका से, पच्चोरुहइ - नीचे उतरी। भावार्थ - कृष्ण-वासुदेव ने पद्मावती देवी को पाट पर बिठा कर एक सौ आठ स्वर्ण कलशों से स्नान करवाया यावत् दीक्षा का अभिषेक किया और सभी अलकारों से अलंकृत कर के हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली शिविका (पालकी) पर उसे बिठाया और द्वारिका नगरी के मध्य होते हुए रैवतक पर्वत के सहस्राम वन में आये और पालकी नीचे रखी। पद्मावती देवी शिविका से नीचे उतरी। - विवेचन - उस समय राजमार्ग चौड़े होते थे, सौ आदमी एक साथ निकल सके - वैसे मार्गों से ऐसी पालकियाँ निकलती थी। तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमावई देविं पुरओ कटु जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिटणेमिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - "एस णं भंते! मम अग्गमहिसी पउमावई णामं देवी, इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा अभिरामा जीवियऊसासा हिययाणंदजणिया उंबरपुप्फविव दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? तण्णं अहं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणीभिक्खं दलयामि। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! सिस्सिणी भिक्खं।" अहासुहं। ___कठिन शब्दार्थ - पुरओ कट्ट - आगे करके, अग्गमहिसी - अग्रमहिषी - पटरानी, इट्ठा- इष्ट, कंता - कान्त, पिया - प्रिय, मणुण्णा - मनोज्ञ, मणामा - मनाम - मन के अनुकूल चलने वाली, अभिरामा - अभिराम - सुंदर, जीवियऊसासा - जीवन में श्वासोच्छ्वास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy