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________________ वर्ग ५ अध्ययन १ - द्वारिका में उद्घोषणा और कृष्ण की धर्मदलाली १०३ 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來***************** हाथी से उतर कर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी और जहाँ अपना सिंहासन था, वहाँ गये। वे सिंहासन पर पूर्वाभिमुख बैठे और कौटुम्बिक पुरुषों (राजसेवकों) को बुला कर इस प्रकार बोले.. विवेचन - श्रीकृष्ण ने भगवान् अरिष्टनेमि से अपना भविष्य - तीर्थंकर बन कर मुक्ति पाने का - सुन कर बहुत प्रसन्नता का अनुभव किया। मैं अनंतकाल तक भवभ्रमण में अटका, भटका, कर्मों ने मुझे प्रत्येक लोकाकाश प्रदेश पर पटका, जन्म-मरण, संयोग-वियोग, रोग, बुढ़ापा सबका मुझे खूब लगा झटका। अब मैं संसार से मुक्त होऊंगा। मैं अभव्य नहीं भव्य हूँ। अनंत संसारी नहीं, चालू भव सहित तीसरा भव बस! फिर छुट्टी। ऐसे विचारों से जयनाद करके सिंहनाद किया - जैसे शेर दहाड़ता है वैसे ही वे दहाड़े। ऐसा सिंहनाद उन्होंने जब द्रोपदी को लेने पद्मनाभ की अपरकंका गये थे तब भी किया था। संसार में संसरण खत्म, यह जीव के लिए सबसे भारी खुशी है। श्रीकृष्ण ने हार्दिक हर्षावेश में ही यह सब कुछ भगवान् के सामने किया। केवली भगवान् ने अपने ज्ञान में यह सब किया जाना देखा था, वह तो अन्यथा होना ही नहीं था। द्वारिका में उद्घोषणा और कृष्ण की धर्मदलाली . (५५) गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! बारवईए णयरीए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा एवं वयह - “एवं खलु देवाणुप्पिया! बारवईए णयरीए दुवालसजोयण-आयामाए जाव पच्चक्खं देवलोगभूयाए सुरग्गिदीवायणमूले विणासे भविस्सइ तं जो णं देवाणुप्पिया! इच्छइ बारवईए णयरीए राया वा जुवराया वा ईसरे तलवरे माडंबिए कोडुबिए इन्भे सेट्ठी वा देवी वा कुमारो वा कुमारी वा अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए मुंडे जाव पव्वइत्तए, तं णं कण्हे वासुदेवे विसजइ पच्छाउरस्स वि य से अहापवित्तं वित्तिं अणुजाणइ, महया इड्डिसक्कारसमुदएण य से णिक्खमणं करेइ, दोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह घोसित्ता मम एवं आणत्तियं पच्चप्पिणह।" तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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