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________________ अन्तकृतदशा सूत्र १०२ ****************來的$$$$字的來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 कठिन शब्दार्थ - झियाहि - आर्तध्यान मत करो, उज्जलियाओ - निकल कर, अणंतरं - अनन्तर - बिना कोई दूसरा भव किये, आगमिस्साए - आगामी, उस्सप्पिणीए - उत्सर्पिणी, पुंडेसु - पुण्ड्र, जणवएसु - जनपद में, सयदुवारे - शतद्वार, अरहा - अर्हततीर्थंकर, भविस्ससि - बनोगे (होओगे), बहूई वासाई - बहुत वर्षों तक, केवलपरियायं - केवली पर्याय का, पाउणित्ता - पालन कर, सिज्झिहिसि - सिद्ध हो जाओगे। .. भावार्थ - तब भगवान् अरिष्टनेमि ने कहा - "हे कृष्ण! तुम इस प्रकार आर्तध्यान मत करो। तुम तीसरी पृथ्वी से निकल कर आगामी उत्सर्पिणी काल में इसी जम्बूद्वीप में भरत-क्षेत्र के पुंड्रजनपद के शतद्वार नगर में 'अमम' नाम के बारहवें तीर्थंकर बनोगे। वहाँ बहुत वर्षों तक केवल-पर्याय का पालन कर सिद्ध पद प्राप्त करोगे।" . हर्षावेश और सिंहनाद तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिट्टणेमिस्स अंतिए एयमढें सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्टे अप्फोडेइ, अप्फोडित्ता वग्गइ, वग्गित्ता तिवलिं छिंदइ, छिंदित्ता सीहणायं करेइ, करित्ता अरहं अरिट्ठणेमिं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव अभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुहइ दुरुहित्ता जेणेव बारवई णयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। अभिसेय हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सए सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी कठिन शब्दार्थ - अप्फोडेइ - जंघा पर फटकार लगाई, वग्गड़ - उछल कूद की, तिवलिं छिंदइ - त्रिपदी छेदन - एक कदम आगे और दो कदम पीछे हटना, सीहणायं - सिंहनाद। . भावार्थ - भगवान् अरिष्टनेमि के मुखारविन्द से अपने भविष्य का वृत्तान्त सुन कर कृष्ण-वासुदेव हृष्ट-तुष्ट हृदय से अपनी भुजा ठोकने लगे और हर्षावेश में जोर-जोर से शब्द करने लगे। उन्होंने तीन चरण पीछे हट कर सिंहनाद किया। फिर भगवान् को वन्दन-नमस्कार कर के अभिषेक हस्ति-रत्न पर चढ़े और द्वारिका नगरी के मध्य होते हुए अपने भवन में पहुंचे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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