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१०-१३ अज्झायणाणि शेष (१०-१३) अध्ययन
(४५) एवं दुम्मुहे वि कूवदारए वि दोण्हं वि बलदेवे पिया, धारिणी माया ॥१०-११॥ दारुए वि एवं चेव णवरं वसुदेवे पिया, धारिणी माया॥१२॥ एवं अणादिट्ठी वि, वसुदेवे पिया, धारिणी माया॥१३॥
एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।
॥ इइ तइओ वग्गो ॥ ___ भावार्थ - इसी प्रकार 'दुर्मुख' और 'कूपदारक' - इन दोनों कुमारों का भी वर्णन जानना चाहिए। इन दोनों के पिता का नाम 'बलदेव' और माता का नाम 'धारिणी' था। इनका सारा वर्णन सुमुख अनगार के समान ही है। ___'दारुक' कुमार का वर्णन भी सुमुख कुमार के समान ही है। अन्तर केवल इतना है कि इनके पिता का नाम 'वसुदेव' और माता का नाम 'धारिणी' था।
इसी प्रकार 'अनादृष्टि' कुमार का भी वर्णन है। इनके पिता का नाम 'वसुदेव' और माता का नाम 'धारिणी' था। दीक्षा ले कर ये भी मोक्ष गये।
हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदशा नामक आठवें अंग के तीसरे वर्ग में तेरह अध्ययनों का इस प्रकार अर्थ कहा है। ॥ तीसरे वर्ग के १० से १३ अध्ययन समाप्त॥
॥ इति तृतीय वर्ग समाप्त॥
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