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वर्ग ३ अध्ययन ८ - उपसंहार **********************-*-*-*-**-*************************************** तक किया जा सकता है कि सिर पर जाज्वल्यमान अंगारे रहते हुए भी मन में परम शान्ति की सरिता बहती रहे। इसके लिए यह स्पष्ट उदाहरण है। हम सब गंजसुकुमाल बन कर परम समाधि के पथ पर ऊर्ध्वारोहण करें, यही अभिप्रेत है।
उपसंहार
(४३) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।
॥ अटुं अज्झयणं समत्तं॥ भावार्थ - हे जम्बू! सिद्धि-गति को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदशा नामक आठवें अंग के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन के उपरोक्त भाव फरमाये हैं।
विवेचन - उपसंहार करते हुए आचार्य देव सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी जो नमोत्थुणं में फरमाये गये सभी गुण गणों से सुशोभित यावत् मोक्ष स्थान को प्राप्त हैं। अंतकृतदशा सूत्र के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन के उपरोक्त भाव फरमाये हैं।
जम्बूस्वामी ने विनयपूर्वक गुरु महाराज के श्रीवचनों को 'तहत्ति' कह कर स्वीकार किया।
॥तीसरे वर्ग का आठवां अध्ययन समाप्त॥
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