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दशाश्रुत स्कन्ध सूत्र
दशाश्रुत स्कन्ध के कुल दस अध्ययन ( दशा) हैं यथा १. असमाधिस्थान २. सबल दोष ई. अशातना ४. गणिसम्पदा ५. चित्त समाधी स्थान ६. उपासक प्रतिमा ७. भिक्षु प्रतिमा ८. पर्युषण कल्प ९. महामोहनीय स्थान १०. आयति स्थान ।
१. असमाधि स्थान
जिन कार्यों से चित्त में शांति रहे, ज्ञान, दर्शन, चारित्र में निरन्तर विकास हो, वे समाधि स्थान कहलाते हैं। इसके विपरीत जिन कार्यों से चित्त में अप्रशस्त एवं अशान्त भाव उत्पन्न हो, जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र में बाधक हो । जो साधना जीवन को चोपट कर दे उसे असमाधि स्थान कहा गया है । ये असमाधि स्थान बीस हैं १. उतावल से चले २. बिना पूंजे चले ३. अयोग्य रीति से पूंजे ४. पाट-पाटला अधिक रखे ५. बड़ों के गुरुजनों के सामने बोले ६. वृद्ध - स्थविर - गुरु का उपघात करे (मृत प्रायः करे ) ७. साता - रस - विभूषा के निमित्त एकेन्द्रिय जीव हणे ८. पल पल में क्रोध करे ९. हमेशा क्रोध में जलता रहे. १०. दूसरे के अवगुण बोले, चुगली-निंदा करे ११. निश्चयकारी भाषा बोले १२. नया क्लेश खड़ा करे १३. दबे हुए क्लेश को पीछा जगावे १४. अकाल में स्वाध्याय करे १५. सचित्त पृथ्वी से भरे हुए हाथों से गोचरी करे १६. एक प्रहर रात्रि बीतने पर भी जोर-जोर से बोले १७. गच्छ में भेद उत्पन्न करे १८. क्लेश फैला कर गच्छ में परस्पर दुःख उपजावे १९. सूर्य उदय होने से अस्त होने तक खाया ही करे और २०. अनेषणीयं अप्रासुक आहार लेवे ।
२. सबल दोष - जिन कार्यों को करने से चारित्र की निर्मलता नष्ट होती है, जो चारित्र को चित्तकबरा बना डाले, उन्हें सबल कहा गया है। वे सबल दोष २१ हैं १. हस्तकर्म करे । २. मैथुन सेवे । ३. रात्रि भोजन करे । ४. आधाकर्मी आहारादि सेवन करे । ५. राजपिण्ड सेवन करे । ६. पांच बोल सेवे - खरीद किया हुआ, उधार लिया हुआ, जबरन् छिना हुआ, स्वामी की आज्ञा बिना लिया हुआ और स्थान पर या सामने लाकर दिया हुआ आहार आदि ग्रहण करे (साधु को देने के लिए ही खरीदा हो । अन्यथा स्वाभाविक तो सभी खरीदा जाता है) । ७. त्याग कर के बार - बार तोड़े। ८. छह-छह महीने में गण-संप्रदाय - . पलटे । ९. एक मास में तीन बार कच्चे जल का स्पर्श करे नदी उतरे । १०. एक मास में तीन बार माया ( कपट) करे। ११. शय्यातर ( स्थान दाता) के यहाँ का आहार करे ।
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