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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - चतुर्थ दशा
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से किं तं साहिल्लणया? साहिल्लणया चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहाअणुलोमवइसहिए यावि भवइ; अणुलोमकायकिरियत्ता, पडिरूवकायसंफासणया, सव्वत्थेसु अपडिलोमया।से तं साहिल्लणया॥१६॥ ... से किं तं वण्णसंजलणया? वण्णसंजलणया चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहाअहातच्चाणं वण्णवाई भवइ, अवण्णवाई पडिहणित्ता भवइ, वण्णवाई अणुबूहित्ता भवइ, आयवुड्डुसेवी यावि भवइ।से तं वण्णसंजलणया ॥१७॥ . से किं तं भारपच्चोरुहणया? भारपच्चोरुहणया चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहाअसंगहियपरिजणसंगहित्ता भवइ, सेहं आयारगोयर-संगाहित्ता भवइ, साहम्मियस्स गिलायमाणस्स अहाथामं वेयावच्चे अब्भुट्टित्ता भवइ, साहम्मियाणं अहिगरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सिओवस्सिए (वसित्तो) अपक्खग्गाही मज्झत्थभावभूए सम्म ववहरमाणे तस्स अहिगरणस्स खमावणाए विउसमणयाए सयासमियं अब्भुट्टित्ता भवइ, कहंणु साहम्मिया अप्पसदा अप्पझंझा अप्पकलहा अप्पकसाया अप्पतुमंतुमा संजमबहुला संवरबहुला समाहिबहुला अप्पमत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणाणं एवं च णं विहरेजा। से तं भारपच्चोरुहणया॥१८॥ एसा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अट्ठविहा गणिसंपया पण्णत्ता॥१९॥त्ति बेमि॥
॥चउत्था दसा समत्ता॥ कठिन शब्दार्थ - तस्स - उस (पूर्वोक्त शिष्य की), गुणजाइयस्स - गुणजातीय - गुणसंपन्न, उवगरणउप्पायणया - उपकरणोत्पादनता - संयमोपयोगी उपकरणों को प्राप्त करना, साहिल्लणया - सहायकता - रुग्ण, अशक्त आदि श्रमणों को सहाय्य देना, वण्णसंजलणया - वर्णसंज्वलनता - गण और गणी - आचार्य के गुणों, विशेषताओं को प्रकाशित करना, संकीर्तित करना, भारपच्चोरुहणया - भारप्रत्यवरोहणता - गण विषयक, स्वाश्रित उत्तरदायित्व का संवहन करना, अणुप्पण्णाणं - अप्राप्त, सारक्खित्ता - सांरक्षता, संगोविता - संगोपनता - यथावत् मर्यादानुरूप बनाए रखना, परित्तं - परीत - परिमित न्यूनता, पदरित्ता - प्रत्युद्धारकता - साधु के पास उपकरणों की अल्पता-न्यूनता हो, उसे
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