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________________ २६ दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - चतुर्थ दशा kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk (स) पूर्वाधीत सूत्र की धारणा शिष्य को कहाँ तक है, यह जानकर आगे वाचना देना (जिससे पूर्व स्मरण लुप्त न हो)। (द) अर्थनिर्यापकता - पूर्वापर विषयों के सामंजस्य पूर्वक वाचना देना। ये वाचनासंपदा के चार प्रकार हैं। ६. मतिसंपदा कितने प्रकार की होती है? मतिसंपदा चार प्रकार की होती है - (अ) अवग्रहमतिसंपदा - साधारणतया सूत्रार्थ का ज्ञान होना। (ब) ईहामतिसंपदा - सामान्य रूप से ज्ञान अर्थ को विशेष रूप से जानने की वांछा, (स) अवायमतिसंपदा - ईहा द्वारा स्वायत्त वस्तु स्वरूप का विशेष रूप से निश्चय करना। (द) धारणामतिसंपदा - निश्चित रूप से ज्ञात वस्तु को चिरस्थायी रूप से स्मृति में टिकाना। अवग्रहमतिसंपदा के कितने प्रकार हैं? इसके छह प्रकार हैं - (i) क्षिप्र अवग्रह - ज्ञेय विषय को सामान्य रूप में शीघ्र गृहीत करना, (ii) बहु अवग्रह - बहुलतया, व्यापक रूप में गृहीत करना, (iii) बहुविध अवग्रह - अनेक प्रकार से गृहीत करना, (iv) ध्रुव अवग्रह - निश्चित रूप में गृहीत करना, (v) अनिश्रित अवग्रह - बिना किसी आधार के अपनी बुद्धि से ग्रहण करना, (vi) असंदिग्ध अवग्रह - संदेह रहित रूप में अवगृहीत करना, यह अवग्रह मतिसंपदा का स्वरूप है। इसी प्रकार ईहामतिसंपदा एवं अवायमतिसंपदा के संबंध में ज्ञातव्य है। धारणामतिसंपदा कितने प्रकार की बतलाई गई है? धारणामतिसंपदा छह प्रकार की है - (i) बहु धारणा - विविध जाति युक्त पदार्थों के ज्ञान को स्मृति में रखना, (ii) बहुविध धारणा - धारणा में गृहीत पदार्थ के विविध पक्षों को स्मृति में रखना, (iii) पुराणा धारणा - अतीकालीन विषयों, वृत्तों, घटनाओं को स्मृति में रखना, (iv) दुर्धर धारणा - अतिबौद्धिक परिश्रम के द्वारा जिन्हें स्मृति में रखा जा सके, ऐसे विषयों को स्मृति में बनाए रखना, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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