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________________ व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★tttttttttttttttttttttttttta १८२ २६९. वज्रमध्य चन्द्रप्रतिमा स्वीकार किए हुए साधु को कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन आहार तथा पानी की पन्द्रह-पन्द्रह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है। . सभी द्विपद-चतुष्पदः प्राणियों के खाद्य प्राप्त कर दाता के यहाँ से लौट जाने पर यावत् पूर्व वर्णन के अनुसार याचकों आदि के भिक्षा लेकर चले जाने पर दाता यदि पूर्व वर्णित स्थिति में हो तो उससे आहार-पानी ग्रहण करे, अन्यथा ग्रहण न करे। . द्वितीया के दिन उसे आहार तथा पानी की चवदह-चवदह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। - तृतीया के दिन आहार तथा पानी की तेरह-तेरह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। .. चतुर्थी के दिन आहार तथा पानी की बारह-बारह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। पंचमी के दिन आहार तथा पानी की ग्यारह-ग्यारह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। .. षष्ठी के दिन आहार तथा पानी की दस-दस दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। सप्तमी के दिन आहार तथा पानी की नौ-नौ दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। .. अष्टमी के दिन आहार तथा पानी की आठ-आठ दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। ___ नवमी के दिन आहार तथा पानी की सात-सात दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। ... दशमी के दिन आहार तथा पानी की छह-छह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। एकादशी के दिन आहार तथा पानी की पांच-पांच दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। ___ द्वादशी के दिन आहार तथा पानी की चार-चार दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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