SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेतीस आशातनाएं १७ AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA रसियं - रसयुक्त, मणुण्णं - मनोज्ञ, णिद्धं - स्निग्ध, लुक्खं - रूक्ष - रुखा, आहारित्ता-. आहार करे, किंति-वत्ता - क्या बोलते हो, तुमति-वत्ता - तुम या तूं कहे, खद्धं खद्धं वत्ता - क्षण-क्षण वार्तालाप (अनर्गल प्रलाप) करे, तज्जाएणं - तर्जित करे - तिरस्कार करे, एवं वत्ता - ऐसा बोले, णो सुमरसीति - याद नहीं है, सुमणसे - मन को अच्छा लगना, परिसं - परिषद् को, भेत्ता - बिखेर दे - विसर्जन करवा दे, कहं - कथा, अच्छिंदित्ता - भिक्षादि का समय होने का कहकर बाधा उत्पन्न करना, अणुट्ठियाए - अनुत्थित - उठने से पूर्व, अवुच्छिण्णाए - अव्युत्सर्जित - बिखरने से पहले, अवोगडाए - अपगत होने से पूर्व, दोच्चपि - दो बार, तच्चंपि - तीन बार, सिज्जासंथारगं - शय्या संस्तारक, संघट्टित्ता - स्पर्श होने पर, अणणुतावित्ता - अनुनय - क्षमायाचना किए बिना, तुयट्टित्ता - सोवे (त्वग्वर्तयिता - चमड़ी का स्पर्शन करे), उच्चासणंसि - ऊँचे आसन पर (रात्निक से), समासणंसि - समान आसन पर। भावार्थ - हे आयुष्मन्! मैंने मोक्षगत प्रभु महावीर से जैसे सुना है, स्थविर भगवंतों ने उसी प्रकार तेतीस आशातनाएँ प्रतिपादित की हैं। - स्थविर भगवंतों द्वारा प्रतिपादित तेतीस आशातनाएँ कौनसी हैं? स्थविर भगवंतों द्वारा बतलाई गई तेतीस आशातनाएँ इस प्रकार हैं - १. शैक्ष (अल्प दीक्षा पर्याय युक्त साधु) का रत्नत्रयाधिक (दीक्षा ज्येष्ठ) साधु के आगे चलना। २. उनके बराबर चलना। ३. उनके बहुत नजदीक होकर चलना। ४. रात्निक के आगे खड़ा हो जाना। ५. बराबर खड़ा हो जाना। ६. अत्यंत नजदीक खड़ा हो जाना। ७. आगे बैठना। ८. बराबर बैठना। ९. अति समीप बैठना। १०. बाहर शारीरिक चिंतानिवृत्यर्थ (स्थण्डिल भूमि में) जाने पर रत्नत्रयाधिक (दीक्षाज्येष्ठ) मुनि से पूर्व शौच-शुद्धि करना। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy