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________________ व्यवहार सूत्र - अष्टम उद्देशक १५० लौटा दे। यदि सही धारक न मिल पाए तो उसे परठने के अतिरिक्त एक और विकल्प भी स्वीकृत है - आचार्य, उपाध्याय या प्रवर्तक आदि के समक्ष उसे प्रस्तुत करे, वे उसे उसके स्वयं के लिए या अन्य साधुओं के लिए उपयोग के संदर्भ में जैसी आज्ञा दें वैसा करे। जैन साधुओं की सर्वथा व्यवस्थित, अनुशासित तथा आसक्तिशून्य जीवन-पद्धति का यह ज्वलन्त उदाहरण है। अतिरिक्त प्रतिग्रह परिवहनादि-विषयक विधान कप्पड णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अइरेगपडिग्गहं अण्णमण्णस्स अट्टाए दूरमवि अद्धाणं परिवहित्तए धारेत्तए वा परिग्गहित्तए वा, सो वा णं धारेस्सइ अहं वा णं धारेस्सामि अण्णो वा णं धारेस्सइ, णो से कप्पइ ते अणापुच्छिय अणामंतिय अण्णमण्णेसिं दाउं वा अणुप्पदाउं वा, कप्पड़ से ते आपुच्छिय आमंतिय अण्णमण्णेसिं दाउं.वा अणुप्पदाउं वा॥२१७॥ कठिन शब्दार्थ - अइरेगपडिग्गहं - अतिरेक प्रतिग्रह - अतिरिक्त पात्र, वस्त्र आदि, परिवहित्तए - परिवहन करना - लिए जाना, धारेस्सइ - धारण करेगा, धारेस्सामि - धारण करूंगा, अणामंतिय - बिना मन्त्रणा - परामर्श के, दाउं - प्रदान करना, अणुप्पदाउं - अनुप्रदान करना। भावार्थ - २१७. साधु-साध्वियों को किन्हीं दूसरे - आचार्य, उपाध्याय या साधु विशेष हेतु अतिरिक्त पात्र-वस्त्र आदि का दूर तक परिवहन करना - लिए जाना, धारण करना तथा प्रतिगृहीत करना कल्पता है। • वह - अमुक इसे धारण करेगा, मैं धारण करूंगा अथवा कोई अन्य धारण करेगा, यों सोचते हुए जिनके निमित्त पात्र, वस्त्र आदि लिए हों, उनको पूछे बिना, उनसे परामर्श किए बिना दूसरों को देना, अनुप्रदान करना नहीं कल्पता। - उनसे पूछकर ही, उनके साथ परामर्श करके ही औरों को देना कल्पता है। . विवेचन - साधु-साध्वियों की आचार संहिता में दैनन्दिन जीवन के लिए अपेक्षित पात्र, वस्त्र आदि उपकरण रखने के संबंध में अपरिग्रह के आदर्श के अनुरूप इनके सीमाकरण या परिमाण की मर्यादा है, जो भिन्न-भिन्न गणों या गच्छों में देश, काल, क्षेत्रानुरूप विहित है। . उतनी सीमा या परिमाण से अधिक प्रतिग्रह साधु-साध्वी नहीं रखते। किन्तु आचारानुमोदित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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