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१४९ मार्ग-पतित उपकरण के ग्राहित्व के संदर्भ में विधान AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA* जाए, उस गिरे हुए उपकरण को कोई दूसरा साधर्मिक साधु देखे तो, 'जिसका यह उपकरण है, उसे मैं लौटा दूंगा,' इस आगार के साथ वह उसे ग्रहण कर ले और जहाँ अन्य साधु को देखे - दूसरा कोई साधु मिले तो वह उसे कहे - हे आर्य! क्या इस उपकरण को आप : पहचानते हैं ?
वह कहे - हाँ, मैं इसे पहचानता हूँ, अर्थात् यह मेरा ही है तो वह उसे सौंप दे। :
यदि वह कहे - मैं इसे नहीं पहचानता तो वह न तो स्वयं अपने लिए उसका उपयोग करे तथा न दूसरे को ही दे, किन्तु एकान्त में अतिप्रासुक भूमि में उसे परठ दे।
२१६. किसी साधु का ग्रामानुग्राम विचरण करते समय कोई उपकरण गिर जाए. तथा कोई दूसरा साधर्मिक साधु उस उपकरण को देखे तो उसको आगार के साथ गृहीत करना, दूर तक साथ लिए जाना कल्पता है और जहाँ अन्य साधु को देखे - दूसरा कोई साधु मिले तो वह उसे कहे - हे आर्य! क्या इस उपकरण को आप पहचानते हैं ?
वह कहे - हाँ, मैं इसे पहचानता हूँ, अर्थात् यह मेरा ही है तो वह उसे सौंप दे।.
यदि वह कहे - मैं इसे नहीं पहचानता तो वह न तो स्वयं अपने लिए उसका उपयोग करे और न दूसरे को ही दे, किन्तु एकान्त में, अतिप्रासुक भूमि में उसे परठ दे।
विवेचन - जैन साध्वाचार या आचार संहिता बहुत ही सूक्ष्म एवं व्यावहारिक है। संयममूलक चर्या में जरा भी त्रुटि न हो, इस ओर पूरा ध्यान रखते हुए मर्यादाओं या नियमोपनियमों का विधान किया गया है।
इन सूत्रों में इसी प्रकार का वर्णन है, जो साधु के निष्परिगृही और आसक्तिशून्य जीवन पर प्रकाश डालता है। भिक्षाचर्या, विचारभूमि या विहारभूमि गमन के प्रसंग में किसी साधु का यदा-कदा कोई बहुत छोटा उपकरण गिर सकता है। संयोगवश उधर से निकलते हुए किसी अन्य साधु की नजर में वह आ जाए तो वह उसकी उपेक्षा न करे। यह सोचते हुए कि जिसका यह है, उसे मैं लौटा दूंगा, उसे वह ले ले। पहचान और जाँचपूर्वक जिसका वह हो, उसे सौंप दे। यदि उस लघु उपकरण का कोई असली धारक न मिले तो उसे वह यथाविधि परिष्ठापित कर दे।
यदि ग्रामानुग्राम विहरण करते समय किसी साधु का कोई छोटा या बड़ा उपकरण मार्ग में गिर जाए, किसी दूसरे साधु को वह मिल जाए तो उस उपकरण की विशेष उपयोगिता देखता हुआ उसे दूर तक ले जाए। उसका सही धारक मिल जाए तो उसे जाँच-पहचान के बाद उसको
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