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इक्कीस शबल दोष .
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इन इक्कीस शबल दोषों में पहला दोष हस्तकर्म आया है। सामान्यतः भाषा में इसके लिए हस्तमैथुन का प्रयोग मिलता है, जो शाब्दिक व्युत्पत्ति की दृष्टि से समुचित नहीं है। क्योंकि मैथुन शब्द, जैसा ऊपर लिखा गया है, द्वैतात्मक है, युगल द्वारा ही संभव है। हस्तकर्म में व्यक्ति स्वयं (एकाकी) ही यह कुकृत्य करता है। हस्त के साथ आया हुआ कर्म शब्द सामान्यत: "क्रीयतेति कर्म" - के अनुसार किए जाने वाले काम का द्योतक है। किन्तु यहाँ दूषित, निन्दित कृत्यों की श्रृंखला में आने से इसका अर्थ कुत्सित हो गया है, कुकर्म का द्योतक हो गया है। यह अत्यन्त जघन्य एवं निंदनीय कार्य है।
हस्तकर्म के बाद मैथुन सेवन का जो उल्लेख हुआ है, वह भी आजीवन ब्रह्मचर्य व्रतधारी के लिए घोर कलंक रूप है। नव बाड़ एवं दशम कोट सहित ब्रह्मचर्य पालन एक साधु के लिए सर्वथा अपरिहार्य है। इस संबंध में वह कभी विचलित न हो जाए इसलिए मैथुन की यहाँ विशेष रूप से चर्चा की है। ___ "मरणं बिन्दु पातेन जीवन बिन्दु धारणात्" यह जो कहा गया है, सर्वथा तथ्यपूर्ण है। शुक्रनाश मृत्यु है और उसकी सुरक्षा - धारणा जीवन है। .. जो ब्रह्मचर्य का अखंड पालन करते हैं, वे नि:संदेह धन्य हैं। "तवेसु वा उत्तम बंभचेरे" - इसीलिए ब्रह्मचर्य को सब तपों में उत्तम, उत्कृष्ट बतलाया गया है। ब्रह्मचारी साधक विश्ववन्द्य, विश्वपूज्य होता है। कहा है -
देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस्स-किन्नरा। बंभयारि नर्मसति, दुक्करं जे करंति तं॥ (उत्तराध्ययन सूत्र-१६/१६) - अर्थात् देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर - ये सभी उस ब्रह्मचारी को नमस्कार करते हैं, जो दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है।
ब्रह्मचर्य की उच्च भूमिका में श्रमण सदैव अपने आपको हिमालयवत् अटल बनाए रखे यह आवश्यक है। किन्तु यह बहुत सरल नहीं है, दुष्कर है। इसके लिए साधक को क्षणक्षण सावधान, जागरूक और प्रयत्नशील रहना होता है। क्योंकि काम का आवेग बड़ा दुर्वह है। कहा है -
जउकुंभे जोइउवगूढे, आसुऽभिंतत्ते णासमुवयाई। - एवित्थियाहि अणगारा, संवासेण णासमुवयति॥
... (सूत्रकृतांग सूत्र १-४-१-२७)
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