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________________ व्यवहार सूत्र - पंचम उद्देशक १०० ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ करवट के बल सोये हुए, दोच्चं पि तच्चं पि - दो-तीन बार, पडिपुच्छित्तए - परिपृच्छा करे - पूछे, पडिसारेत्तए - प्रतिसारना - पुनरावृत्ति करे। भावार्थ - १४७. वृद्धावस्था प्राप्त स्थविरों को यदि आचारप्रकल्पाध्ययन विस्मृत हो जाए और यदि वे फिर उसे स्मरण कर पाए या न कर पाए तो भी उनको आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना कल्पता है। . १४८. वृद्धावस्था प्राप्त स्थविरों को यदि आचारप्रकल्पाध्ययन विस्मृत हो जाए तो उन्हें बैठे हुए, करवट लेते हुए - सोते हुए, उत्तानासन में स्थित होते हुए, करवट के बल सोते हुए आचारप्रकल्प नामक अध्ययन को दो बार - तीन बार (आचार्य या उपाध्याय से) पूछना, पुनरावृत्त करना कल्पता है। . विवेचन - स्थविर शब्द का तात्पर्य अध्ययन, अनुभव, साधना आदि के अतिरिक्त मुख्यतः अवस्था के साथ जुड़ा हुआ है। भाष्यकार ने उनहत्तर (६९) वर्ष से ऊपर की आयु के भिक्षु को स्थविर बताया है। स्थानांग सूत्र एवं इसी (व्यवहार सूत्र) के दशम उद्देशक में उनसठ (५९) वर्ष से ऊपर की आयु के भिक्षु को स्थविर के रूप में परिभाषित किया गया है। वृद्धावस्था में सामान्यतः स्मरणशक्ति कम हो जाती है तथा शरीर भी दुर्बल हो जाता है। वैसी स्थिति में स्थविरों को यदि आचार-प्रकल्प विस्मृत हो जाए तो भी उनका महत्त्व कम नहीं आंका जाता। वे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणावच्छेदक आदि पद के लिए योग्य माने जाते हैं। ... यदि वे विस्मृत आचारप्रकल्पाध्ययन को पुनः स्मरण करें तो उनके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे सुखासन आदि में बैठकर ही वैसा करें। वे बैठे हुए, सोए हुए, करवट लेते हुए आदि जैसी भी शारीरिक अनुकूलता हो, वैसी स्थिति में आचार्य या उपाध्याय से दो बार - तीन बार पूछते हुए आचारप्रकल्पाध्ययन की पुनरावृत्ति कर सकते हैं। यह आपवादिक विधान है। पारस्परिक आलोचना-विषयक विधि-निषेध जे णिग्गंथा या णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, णो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स अंतिए आलोएत्तए, अत्थि या इत्थ ण्हं केइ आलोयणारिहे, कप्पइ ण्हं तस्स अंतिए आलोइत्तए, णत्थि या इत्थ ण्हं केइ आलोयणारिहे, एवं ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स अंतिए आलोएत्तए॥१४९॥ कठिन शब्दार्थ - संभोइया - सांभोगिक - उपधि आदि वस्तुओं के पारस्परिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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