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________________ व्यवहार सूत्र - पंचम उद्देशक वे साधर्मिक साध्वियाँ उस कारण से दीक्षा-छेद या परिहार- तप रूप प्रायश्चित्त की भागिनी होती हैं। १४४. मोह या परीषहादिवश संयम का त्याग कर जाने वाली प्रवर्त्तिनी किसी अन्य विशिष्ट साध्वी से कहे - हे आर्ये! मेरे संयम त्यागकर चले जाने पर इस अमुक साध्वी को मेरे पद पर प्रस्थापित कर देना । यदि प्रवर्त्तिनी द्वारा निर्दिष्ट साध्वी उस पद पर मनोनीत किए जाने योग्य हो तो उसे उस ९६ - Jain Education International ★✰✰✰ पद पर मनोनीत करना चाहिए। यदि वह पद के योग्य न हो तो उसे पद पर मनोनीत नहीं करना चाहिए । वहाँ - उस समुदाय में कोई दूसरी साध्वी पद के योग्य हो तो उसे पद पर स्थापित करना चाहिए । यदि दूसरी कोई साध्वी पद योग्य न हो तो उसी ( प्रवर्त्तिनी द्वारा निर्दिष्ट ) साध्वी को पद पर प्रस्थापित करना चाहिए। उसे पद पर स्थापित करने पर कोई अन्य स्थविरा (विज्ञा) साध्वी कहे - हे आर्ये! तुम इस पद के योग्य नहीं हो, अतः इस पद से हट जाओ - पद का त्याग कर दो। ऐसा कहे जाने पर वह (पद पर नियुक्त) साध्वी यदि पद को छोड़ देती है तो उसे दीक्षा-छेद या परिहार- तप रूप प्रायश्चित्त नहीं आता । साधर्मिक साध्वियाँ यदि उस ( पद पर मनोनीत ) साध्वी को पद से हटने का न कहें तो साधर्मिक साध्वियाँ उस कारण से दीक्षा-छेद या परिहार- तप रूप प्रायश्चित की भागिनी होती हैं। For Personal & Private Use Only - . विवेचन - चतुर्थ उद्देशक में रोगग्रस्त आचार्य या उपाध्याय के द्वारा अपने देहावसान के पश्चात् तथा मोह, परीषहादिवश संयम त्याग कर जाने वाले आचार्य या उपाध्याय द्वारा अपने पद पर अन्य साधु को नियुक्त करने के संदर्भ में दिए गए निर्देश पर करणीयता के संबंध में जो वर्णन आया है, वैसा ही वर्णन यहाँ रोगग्रस्त प्रवर्त्तिनी द्वारा अपने मरणोपरान्त और मोह, परीषहादिवश संयम त्यागने के अनन्तर अन्य साध्वी को पद देने के विषय में करणीय के . संबंध में विवेचन हुआ है । दोनों का आशय एक ही है । पूर्वतन वर्णन का संबंध आचार्य या उपाध्याय से है, इस वर्णन का संबंध प्रवर्त्तिनी से है । मात्र इतना सा अन्तर है । www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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