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________________ पंचमो उद्देसओ - पंचम उद्देशक प्रवर्तिनी आदि के साथ विहरणशीला साध्वियों का संख्याक्रम णो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पबिइयाए हेमंतगिम्हासु चारए ॥१३१॥ कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए॥१३२॥ णो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए॥१३३॥ कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए हेमंतगिम्हासु चारए॥१३४॥ णो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए वासावासं वत्थए॥१३५॥ कप्पइ पवत्तिणीए अप्पचउत्थाए वासावासं वत्थए॥१३६॥ णो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए वासावासं वत्थए॥१३७॥ कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पपंचमाए वासावासं वत्थए॥१३८॥ से गामंसि वा णगरंसि वा णिगमंसि वा जाव रायहाणिसिं वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पतइयाणं बहूणंगणावच्छेदणीणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चारए अण्णमण्णं णी(णिस्)साए॥१३९॥ से गामंसि वा णगरंसि वा णिगमंसि वा जाव रायहाणिंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पचउत्थाणं बहूणंगणावच्छेइणीणं अप्पपंचमाणं कप्पइ वासावासं वत्थए अण्णमण्णं णीसाए॥१४०॥ कठिन शब्दार्थ - पवत्तिणीए - प्रवर्तिनी को, गणावच्छेइणीए - गणावच्छेदिनी को, बहूणं - बहुत सी, णीसाए - निःश्रय (निश्रा)। भावार्थ - १३१. हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में प्रवर्तिनी को अपने अतिरिक्त एक और साध्वी को साथ लिए अर्थात् दो के रूप में विचरण करना नहीं कल्पता।। ... १३२. हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में प्रवर्त्तिनी को अपने अतिरिक्त दो अन्य साध्वियों को साथ लिए अर्थात् तीन के रूप में विचरण करना कल्पता है। - १३३. हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में गणावच्छेदिनी को अपने अतिरिक्त दो अन्य साध्वियों को साथ लिए अर्थात् तीन के रूप में विचरण करना नहीं कल्पता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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