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________________ ७७ ************ उपस्थापन विधि ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ वृद्ध है। जो जन्म से अर्थात् आयु से स्थविर होते हैं, वे जाति-स्थविर० कहे जाते हैं। स्थानांग वृत्ति में उनके लिए साठ वर्ष की आयु का संकेत किया गया है। जो श्रुत-समवाय आदि अंग, आगम व शास्त्र के पारगामी होते हैं, वे श्रुत-स्थविर * कहे जाते हैं। उनके लिए आयु की इयत्ता का निबन्ध नहीं है। वे छोटी आयु के भी हो सकते हैं। . पर्याय-स्थविर वे होते हैं, जिनका दीक्षाकाल लम्बा होता है। इनके लिए बीस वर्ष के दीक्षा-पर्याय के होने का वृत्तिकार ने उल्लेख किया है। जिनकी आयु परिपक्व होती है, उन्हें जीवन के अनेक प्रकार के अनुभव होते हैं। वे जीवन में बहुत प्रकार के अनुकूल-प्रतिकूल, प्रिय-अप्रिय घटनाक्रम देखे हुए होते हैं अतः वे विपरीत परिस्थिति में भी विचलित नहीं होते, वे स्थिर बने रहते हैं। स्थविर शब्द स्थिरता का भी द्योतक है। . जिनका शास्त्राध्ययन विशाल होता है, वे भी अपने विपुल ज्ञान द्वारा जीवन-सत्त्व के परिज्ञाता होते हैं। शास्त्र-ज्ञान द्वारा उनके जीवन में आध्यात्मिक स्थिरता और दृढता होती है। ___जिनका दीक्षा-पर्याय, संयम-जीवितव्य लम्बा होता है, उनके जीवन में धार्मिक परिपक्वता, चारित्रिक बल एवं आत्म-ओज सहज ही प्रस्फुटित हो जाता है। . इस प्रकार के जीवन के धनी श्रमणों की अपनी गरिमा है। वे दृढधर्मा होते हैं और संघ के श्रमणों को धर्म में, साधना में, संयम में स्थिर बनाये रखने के लिए सदैव जागरूक तथा प्रयत्नशील रहते हैं। प्रवचनसारोद्धार (द्वार-२) में कहा गया है - "प्रवर्तितव्यापारान् संयमयोगेषु सीदतः साधून् ज्ञानादिषु। ___ ऐहिकामुष्मिकापायदर्शनतः स्थिरीकरोतीति स्थविरः।" जो साधु लौकिक एषणावश सांसारिक कार्य-कलापों में प्रवृत्त होने लगते हैं, जो संयमपालन में, ज्ञानानुशीलन में कष्ट का अनुभव करते हैं, ऐहिक और पारलौकिक हानि या दुःख जातिस्थविराः - षष्टिवर्ष-प्रमाणजन्मपर्याया। .तस्थविराः - समवायाङ्ग धारिणः । .पोषस्थविराः - विशतिवर्षप्रमाणप्रव्रज्या पर्यायवंतः। - स्थानांग सूत्र, स्थान १० सूत्र ७६१ वृत्ति __ - स्थानांग सूत्र, स्थान १० सूत्र ७६१ वृत्ति - स्थानांग सूत्र, स्थान १० सूत्र ७६१ वृत्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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