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भावार्थ - ४०. साध्वियों को डण्ठल युक्त तुम्बपात्र रखना एवं उसका उपयोग करना
नहीं कल्पता ।
४१. साधुओं को डण्ठल सहित तुम्बपात्र रखना एवं उसका उपयोग करना कल्पता है । विवेचन - साध्वियों के लिए सवृन्त अलाबु रखने का निषेध करने में पूर्वसूत्रानुसार उनकी ब्रह्मचर्य भावना का परिरक्षण ही है ।
सवृन्त पात्रकेशरिका रखने का विधि-निषेध
णो कप्पड़ णिग्गंथीणं सवेण्टयं पायकेसरियं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ४२ ॥ कप्पर णिग्गंथाणं सवेण्टयं पायकेसरियं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ४३ ॥
कठिन शब्दार्थ- पायकेसरियं पात्रकेसरिका ।
भावार्थ - ४२. साध्वियों को सवृन्त पात्र प्रमार्जनिका रखना एवं उसका उपयोग करना नहीं कल्पता ।
४३. साधुओं को सवृन्त पात्र प्रमार्जनिका रखना एवं उसका उपयोग करना कल्पता है। विवेचन - जिस पात्र का मुंह छोटा हो, सफाई के लिए हाथ अन्दर न जा सके, उनकी स्वच्छता के लिए कपड़ा लपेटी हुई काष्ठदण्डिका का प्रयोग किया जाता है।
केसर का अर्थ पुष्प पराग या किंजल्क होता है । दण्डिका पर किंजल्क की तरह एदार मुलायम वस्त्र लपेटा जाता है, जिससे पात्र भलीभांति स्वच्छ हो सके। वस्त्र के इस किंजल्कक्त् वैशिष्ट्य के कारण इसे पात्र केसरिका कहा गया है।
पूर्वोक्त वर्णनानुसार यहाँ भी ब्रह्मचर्य की अखण्ड आराधना उद्दिष्ट या अभिलक्षित है। दण्डयुक्त पादप्रोच्छन का विधि-निषेध
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बृहत्कल्प सूत्र - पंचम उद्देशक
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णो कप्पइ णिग्गंथीणं दारुदण्डयं पायपुंछणं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ४४॥ कप्पइ णिग्गंथाणं दारुदण्डयं पायपुंछणं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ४५ ॥ कठिन शब्दार्थ - दारुदण्डयं काष्ठमय दण्ड ।
भावार्थ
४४. साध्वियों को दण्ड युक्त पादप्रोंछन रखना, उपयोग में लेना नहीं
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कल्पता ।
४५. साधुओं को दण्युक्त पादप्रोंछन रखना, उपयोग में लेना कल्पता है ।
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