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________________ १२३ साध्वी के लिए आसनादि का निषेध से उवस्सयस्स अंतो वगडाए संघाडिपडिबद्धाए पलंबिय बाहियाए समतलपाइयाए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए॥२२॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए ठाणाइयाए होत्तए॥२३॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए पडिमट्ठावियाए होत्तए॥२४॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए णेसज्जियाए होत्तए।। २५॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए उक्कुडुगासणियाए होत्तए॥२६॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए वीरासणियाए होत्तए॥२७॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए दण्डासणियाए होत्तए॥२८॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए लगण्डसाइयाए होत्तए॥२९॥ . णो कप्पइ णिग्गंथीए ओमंथियाए होत्तए॥३०॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए उत्ताणियाए होत्तए॥३१॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए अम्बखुज्जियाए होत्तए॥३२॥ णो कप्पइ णिग्गंथीए एगपासियाए होत्तए॥३३॥ . कठिन शब्दार्थ - वोसट्ठकाइयाए - सर्वथा व्युत्सर्जित कर - वोसिरा कर, पगिज्झियप्रगृहीत कर - उठाकर, सूराभिमुहीए - सूर्याभिमुख होकर, एगपाइयाए - एक पैर से, ठिच्चा - स्थित होकर, आयावेत्तए - आतापना लेना, अंतो वगडाए - चार दीवारी के भीतर, संघाडिपडिबद्धाए - शरीर को समुचित रूप में वस्त्रों से ढककर, ठाणाइयाए - खड़े होकर, पडिमट्ठावियाए - प्रतिमा में अवस्थित, णेसज्जियाए - बैठने के आसन विशेष में, उक्कुडुगासणियाए - उत्कुटुकासन - उकडू आसन से बैठना, लगण्डसाइयाए - लकुटासन, ओमंथियाए - अधोमुखी होकर, उत्ताणियाए - मुख ऊँचा करके सोना, अम्बखुजियाए - आम्रकुब्जासन, एगपासियाए - एक पसवाड़े से। भावार्थ - २१. साध्वी को अपने शरीर का सर्वथा व्युत्सर्जन कर - वोसिरा कर रहना नहीं कल्पता है। २२. साध्वी को ग्राम यावत् (राजधानी) सन्निवेश के बाहर अपनी भुजाओं को ऊपर उठा कर सूर्याभिमुख होकर, एक पैर के बल खड़े होकर आतापना लेना नहीं कल्पता। अपितु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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