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k★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ • क्र० विषय . .
पृष्ठ छट्ठो उद्देसओ - छठा उद्देशक ..
१३४-१४४ ९३. अकल्प्य वचन निषेध .. .
१३४ ९४. मिथ्या आरोपी के लिए तदनुरूप प्रायश्चित्त विधान
१३६ ९५. परस्पर काँटा आदि निकालने का विधान
१३७ ९६. संकटापन्न स्थिति में साधु द्वारा साध्वी को अवलम्बन का विधान ९७. संयमविघातक छह स्थान . ९८. कल्पस्थिति के छह प्रकार .
१४३ व्यवहार सूत्र पढमो उद्देसओ - प्रथम उद्देशक कुटिलता सहित एवं कुटिलता रहित आलोचना : प्रायश्चित्त
पारिहारिकों तथा अपारिहारिकों का पारस्परिक व्यवहार ३. परिहार-तप निरत भिक्षु का वैयावृत्य हेतु विहार .. ४. एकाकी विहरणशील का गण में पुनरागमन
पार्श्वस्थ, स्वच्छन्द विहरणशील आदि का गण में पुनरागमन ६. अन्य लिंग-ग्रहण के अनन्तर पुनरागमन ७. संयम परित्याग के पश्चात् पुनः गण में आगमन ८. आलोचना-क्रम 'बिइओ उद्देसओ-द्वितीय उद्देशक
२६-४२ ९. विहरणशील साधर्मिकों के लिए परिहार-तप का विधान १०. रुग्ण भिक्षुओं को गण से बहिर्गत करने का निषेध ११. अनवस्थाप्य एवं पारंचित भिक्षु का संयमोपस्थापन - १२. · अकृत्यसेवन : आक्षेप : निर्णयविधि .१३. संयम त्यागने के इरादे से बहिर्गमन : पुनरागमन १४. एकपाक्षिक भिक्षु के लिए पद विधान
३७ १५. पारिहारिक-अपारिहाहिक भिक्षुओं का आहार विषयक पारस्परिक व्यवहार _ तइओ उद्देसओ - तृतीय उद्देशक .
४३-६३ १६. गणधारक - गणाग्रणी भिक्षु-विषयक विधान
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