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• (२९ भिक्षार्थ अनुप्रविष्ट साधु द्वारा वस्त्रादि लेने का विधिक्रम
. xxAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA* __णिग्गंथं च णं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमिं वा णिक्खंतं समाणं केइ वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणेण वा उवणिमंतेजा, कप्पइ से सागारकडं गहाय आयरियपायमूले ठवेत्ता दोच्चं पि उग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए॥३९॥
णिग्गंथिं च णं गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुप्पविटुं केइ वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणेण वा उवणिमंतेजा, कप्पई से सागारकडं गहाय पवत्तिणीपायमूले ठवेत्ता दोच्चं पि उग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए॥४०॥
‘णिग्गंथिं च णं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खंतं समाणिं केइ वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणेण वा उवणिमंतेजा, कप्पड़ से सागारकडं गहाय पवत्तिणीपायमूले ठवेत्ता दोच्चं पि उग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए॥४१॥
- कठिन शब्दार्थ - पिण्डवायपडियाए - आहार के लिए गए हुए, अणुप्पविटुं - प्रवेश किए हुए, वत्येण - वस्त्र, पडिग्गहेण - पात्र, पायपुंछणेण - रजोहरण अथवा पैर साफ करने का कपड़ा, उवणिमंतेजा - उपनिमंत्रित करे - समीप आकर अनुरोध करे, सागारकडं - सागारकृत - आगारपूर्वक गृहीत, उग्गहं - अवग्रह - साधु जीवनोचित उपकरण (वस्तु), परिहार- पास रखना, परिहरित्तए - उपयोग करना, पवत्तिणीपायमूले - प्रवर्तिनी के चरणों में।
भावार्थ - ३८. गाथापति कुल - गृहस्थ के घर में आहार के लिए अनुप्रविष्ट साधु को यदि कोई वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादप्रोञ्छन हेतु उपनिमंत्रित करे - अनुरोध करे तो इन्हें (साधु द्वारा) 'सागारकृत' लेकर, आचार्य के चरणों में रखकर दुबारा उनकी आज्ञा से अपने पास रखना और उनका उपयोग करना कल्पता है। ____३९. विचारभूमि (मल-मूत्र-विसर्जन स्थान) या विहारभूमि (स्वाध्यायभूमि) के लिए (उपाश्रय से) बाहर निकले हुए निर्ग्रन्थ से यदि कोई वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन हेतु अनुरोध करे तो इन्हें "सागारकृत" ग्रहण कर (पहले) आचार्य के चरणों में रखना तथा दुबारा उनकी आज्ञा से इन्हें अपने पास रखना और उपयोग करना कल्पता है।
४०. गाथापतिकुल - गृहस्थ के घर में आहार के लिए अनुप्रविष्ट साध्वी को यदि कोई
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