SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा Akadkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk kkkkkkkkkkkkkkkkk kkkkkkkkkkkkkkk __ साध्वी द्वारा पुरुषत्व प्रापि हेतु निदान - एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते, इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे सेसं तं चेव जाव अंतं करेंति, जस्स णं धम्मस्स णिग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरादिगिंछाए पुरा जाव उदिण्णकामजाया विहरेजा, सा य परक्कमेजा, सा य परक्कममाणी पासेज्जा - जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया, तेसि णं अण्णयरस्स अइजायमाणस्स वा जाव किं ते आसगस्स सयइ? जं पासित्ता णिगंथी णियाणं करेइ - दुक्खं खलु इत्थि(त्तणए)त्तं दुस्संचराइं गामंतराइं जाव सण्णिवसंतराई, से जहाणामए - मंसपेसियाइ वा अंबपेसियाइ वा माउलुंगपेसियाइ वा अंबाडगपेसियाइ वा उच्छुखंडियाइ वा संबलिफलियाइ वा बहुजणस्स आसायणिज्जा पत्थणिज्जा पीहणिजा अभिलसणिजा एवामेव इत्थियावि बहुजणस्स आसायणिजा जाव अभिलसणिज्जा, तं दुक्खं खलु इत्थित्तं, पुमत्तणए साहु, जइ इमस्स सुचरियस्स तवणियम जाव अस्थि वयमवि आगमेस्साणं इमेयारूवाइं ओरालाई पुरिसभोगाई भुंजमाणा विहरिस्सामो, से तं साह। एवं खलु समणाउसो! णिग्गंथी णियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कंता जाव अपडिवजित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवइ, सा णं तत्थ देवे भवइ महिड्डिए जाव महासुक्खे, सा णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता तहेव दारए जाव किं ते आसगस्स सयइ?॥२४॥ तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स जाव अभविए णं से तस्स धम्मस्स संवणयाए, सेय भवइ महिच्छे जाव दाहिणगामिए जाव दुल्लभबोहिए यावि भवइ, एवं खलु जाव पडिसुणित्तए॥२५॥ कठिन शब्दार्थ - इत्थित्तं (इत्थित्तणए) - स्त्रीत्व, दुस्संचराई - दुर्गम्य - कठिनाई से जाने योग्य, गामंतराइं - दूसरे ग्राम, सण्णिवेसंतराइं - नगर के बहिर्वर्ती भाग, मंसपेसियाइमांस का टुकड़ा (मांसपेशिका), अंबपेसियाइ - आम की फांक, माउलुंगपेसियाइ - बिजौरा की फांक, अंबाडग - आम्रातक (अंबाड़ा, बहुत बीज वाले वृक्ष की एक जाति) की फांक, - इक्षु - गन्ना, संबलिफलियाइ - शाल्मली - सेमल की फली, आसायणिज्जा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy