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__साधु द्वारा स्त्रीत्व प्राप्ति हेतु निदान
कि आपके लिए क्या रुचिकर भोजन बनायें? ऐसी स्त्री को देखकर यदि कोई निर्ग्रन्थ निदान करता है कि - पुरुष का जीवन दुःखमय है। क्योंकि जो ये उग्रवंशी या भोगवंशी शुद्ध मातृपितृ पक्षीय पुरुष हैं, वे जब किसी छोटे-बड़े महायुद्ध या संग्राम में जाते हैं तो उन्हें छाती पर छोटे-बड़े शस्त्रों के प्रहार झेलने पड़ते हैं, जिससे वेदना से व्यथित होते हैं। अतः पुरुष का जीवन दुःखमय है किन्तु स्त्री का जीवन सुखमय है। ___यदि मेरे द्वारा सम्यक् रूप में आचरित तप, नियम एवं ब्रह्मचर्य का विशिष्ट फल हो तो मैं
भी आगामी भव में इन स्त्रीविषयक उत्तम भोगों को भोगना चाहूँगा। यह मेरे लिए श्रेष्ठ होगा। _आयुष्मान् श्रमणो! वह निर्ग्रन्थ इस प्रकार निदान कर उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण किए बिना कालधर्म धर्म को प्राप्त कर किसी देवलोक में देवता के रूप में उत्पन्न होता है। (वह) वहाँ महान् ऋद्धिशाली होता है यावत् (वहाँ) सभी सुखों का भोग करता है।
तदनंतर आयुक्षय, भवक्षय एवं स्थितिक्षय होने पर यावत् देवलोक से च्यवन कर किसी कुल (उग्र या भोगवंशीय)में बालिका के रूप में उत्पन्न होता है यावत् उसके माता-पिता योग्य वर को उसे सौंप देते हैं। ___ वह उस पुरुष की इकलौती, एकाकिनी पत्नी होती है यावत् एतद्विषयक समस्त वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। वह अपने घर से निकलते एवं उसमें प्रवेश करते समय छत्र आदि धारण किए हुए एवं दास-दासियों से घिरी रहती है यावत् वे नौकर-चाकर उससे पूछते रहते . हैं कि आपके लिए कौनसे पकवान बनाएं जो आपको रुचिकर - स्वादिष्ट लगते हों?
इस प्रकार की स्त्री को तथारूप - शुद्ध आचारवान् श्रमण या माहण द्वारा केवलिप्ररूपित धर्म का उपदेश देना चाहिए?
हाँ, देना चाहिए। क्या वह धर्म को सुन सकती है?
नहीं, यह संभव नहीं है, वह धर्म सुनने के योग्य नहीं होती क्योंकि वह महातृष्णा युक्त होती है यावत् दक्षिणवर्ती नरक में नैरयिक के रूप में जन्म लेती है एवं आगामी भव में दुर्लभबोधि होती है।
- आयुष्मान् श्रमणो! इस प्रकार के निदान कर्म का यह पापरूप फलविपाक है, जिसके परिणामस्वरूप वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म को भी नहीं सुन सकती है।
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