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साधु द्वारा उत्तम मानुषिक भोगों का निधान *******************kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk आते हुए, णिज्जायमाणस्स - निकलते हुए, भिंगारं - झारी, संगल्लि - रथसमुदाय, उद्धरिय-सेयछत्ते - मस्तक पर तना हुआ श्वेत छत्र, पग्गहियतालियंटे - हाथ में ताड़ के पत्तों के पंखे लिए हुए, पवियण्ण - चलाते हुए - हिलाते हुए, चामराबालवीयणीए - चमरी गाय की पूँछ के बालों का समूह, कूडागारसालाए - कूटागारशाला - पर्वतशिखरोपम ऊँचा एवं विशाल भवन, झियायमाणेणं - प्रकाशित होते हुए, इत्थिगुम्मपरिवुडे - स्त्री समूह से घिरे हुए, आणवेमाणस्स - बुलाए जाने पर, अवुत्ता - अनाहूत - नहीं बुलाए हुए, आविद्धामो - चयनित करें, आसगस्स - भोजन के लिए, चिरट्ठिइएसु - चिरस्थितिकों में - चिरकालीन स्थिति वालों में, आउक्खएणं - आयु क्षय, पुत्तत्ताए - पुत्रत्व के रूप में, पच्चायाइ - उत्पन्न होते हैं, सुकुमालपाणिपाए - सुन्दर हाथ-पैर युक्त, उम्मुक्कबालभावेबचपन व्यतीत हो जाने पर, विण्णायपरिणयमेत्ते - कलाकुशल, जोव्वणगमणुप्पत्ते - क्रमशः युवा होने पर, पेइयं - पैतृक सम्पत्ति का, पडिवज्जइ - प्राप्त होता है, संचाएइ - समर्थ होता है। .. भावार्थ - आयुष्मान् श्रमणो! मैंने जिस धर्म का प्रतिपादन किया है, वह निर्ग्रन्थ प्रवचन-मूलक धर्म ही सत्य, सर्वोत्तम, प्रतिपूर्ण, एकमात्र, शुद्ध एवं न्याय-युक्तिपूर्ण है। वह माया-मृषादि शल्यों का संहरण करने वाला है। सिद्धि, मुक्ति, निर्याण एवं निर्वाण का मार्ग है। वह अवितथ - यथार्थ, शाश्वत, सर्वदुःख रहित है - परमानंदमय है।
इस सर्वज्ञ भाषित धर्म में जो जीव स्थित रहते हैं, इसका परिपालन करते हैं, वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर परिनिर्वाण प्राप्त करते हैं, समस्त दुःखों से छूट जाते हैं।
इस धर्म की ग्रहण-आसेवन रूप साधना में समुद्यत निर्ग्रन्थ जब क्षुधा, तृषा, सर्दी, गर्मी आदि विविध प्रकार के परीषहों को सहन करता है तब यदि उसके चित्त में मोहनीय कर्म के उदय से कामविकार उत्पन्न हो जाय तो भी वह साधु संयममार्ग में पराक्रमपूर्वक गतिशील रहे। उस प्रकार पराक्रमशील रहता हुआ, साधना में संलग्न रहता हुआ, शुद्ध मातृ-पितृपक्षोत्पन्न उग्रवंशीय - भोगवंशीय राजपुरुषों को देखता है। उनमें से किसी एक के भी अपने भवन में प्रवेश करते समय या बाहर निकलते समय छत्र, झारी आदि लिए हुए अनेक दासदासी, किंकर, कर्मकर आदि उनके आगे-पीछे चलते हैं। उसी क्रम में आगे उत्तम अश्व, दोनों प्रधान हाथी तथा पीछे-पीछे श्रेष्ठ, सुसज्ज रथसमूह चलता है। और वे श्वेत छत्र, झारी, ताड़पत्र के पंखे, श्वेत चामर डुलाते हुए सेवकों से घिरे हुए चलते हैं। इस प्रकार के विपुल
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