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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा ***********************kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkek किच्चा अण्णयरे देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवइ महिड्डिएसु जाव चिरटिइएसु, से णं तत्थ देवे भवइ महिड्डिए जाव चिरटिइए, तओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया एएसि णं अण्णयरंसि कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाइ ॥१६॥
से णं तत्थ दारए भवइ सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे, तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणय मि मेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सयमेव पेइयं पडिवंज्जइ, तस्स णं अइजायमाणस्स वा णिजायमाणस्स वा पुरओ जाव महं दासीदास्त्र जाव किं ते आसगस्स सयइ?॥१७॥
तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूवे समणे वा माहणेळ वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खेजा? हंता ! आइक्खेजा, से णं पडिसुणेजा? णो इणढे समढे, अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवाणा ]णयाए, से य भवइ महिच्छे महारंभे महापरिग्गहे अहम्मिए जाव दाहिणगामी जेरइए आग( मे )मिस्साणं दुल्लहबोहिए यावि भवइ, तं एवं खलु समणाउसो ! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावए फलविवागे जंणो संचाएइ केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - णिग्गंथे पावयणे - निर्ग्रन्थ प्रवचन, सच्चे - सत्य, अणुत्तरे - श्रेष्ठ, संसुद्धे - सर्वदोष रहित, णेयाउए - तर्क - युक्तिपूर्ण, सल्लकत्तणे - माया, निदान एवं मिथ्यादर्शन रूप तीनों आध्यात्मिक शल्यों (कंटकों) का कर्त्तक - काटने वाला, णिज्जाणमग्गे - निर्याणमार्ग - मोक्ष मार्ग, अवितहं - यथार्थ, सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे - समस्त दुःखों को नष्ट करने का पथ, सिझंति - सिद्धत्व प्राप्त करते हैं, बुझंति - निर्मल केवलज्ञान के आलोक से समस्त लोकालोक को जानते हैं, मुच्चंति - कर्म बंध से छूटते हैं, सिक्खाए - शिक्षा हेतु, उवट्ठिए - उपस्थित, दिगिंछाए - बुभुक्षा, वायाऽयवेहिं - शीतउष्ण से, पुरापुढे - पूर्व में सहता हुआ, विरूवरूवेहिं - नाना प्रकार के, उदिण्ण - उदय प्राप्त, उग्गपुत्ता - उग्रपुत्र - भगवान् ऋषभदेव द्वारा आरक्षी दल के रूप में नियुक्त, महामाउयाशुद्ध मातृवंशीय, भोगपुत्ता - सुखेश्वर्य सम्पन्न विशिष्ट कुलोत्पन्न पुरुष, अइजायमाणस्स -
® सावए त्ति अट्ठो
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