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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा AAAAAkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk पधारे। तब राजगृह नगर के त्रिपथ, तिराहे, चतुष्क चत्वर आदि संगम स्थानों पर लोगों में चर्चा होने लगी यावत् परिषद् धर्म श्रवण-हेतु निकली यावत् लोग भगवान् की पर्युपासना में रत हुए।
तए णं ते महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदंति णमंसंति वंदित्ता णमंसित्ता णामगोयं पुच्छंति णामगोयं पुच्छित्ता णामगोयं पधारेंति० पधारित्ता एगओ मिलंति एगओ मिलित्ता एगंतमवक्कमंति एगंतमवक्कमित्ता एवं वयासी-जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया भंभसारे दंसणं कंखइ जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं पीहेइ जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं पत्थेइ..अभिलसइ जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया णामगोत्तस्सवि सवणयाए हट्टतुट्ठ जाव भवइ से णं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव सव्वण्णू सव्वदंसी पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे इह आगए इह समोसढे इह संपत्ते जाव अप्पाणं भावमाणे सम्मं विहरइ, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! सेणियस्स रण्णो एयमटुं णिवेएमो पियं भे भवउत्तिकटु अण्णमण्णस्स वयणं पडिसुणंति पडिसुणित्ता रायगिहं णगरं मझमझेणं जेणेव सेणियस्स रण्णो गिहे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता सेणियं रायं करयलपरिग्गहियं जाव जएणं विजएणं वद्धावेंति वद्धावित्ता एवं वयासी-"जस्स णं सामी! दंसणं कंखइ जाव से णं समणे भगवं महावीरे गुणसि(ले)लए चेइए जाव विहरइ, एयर तस्स)णं देवाणुप्पियाणं पियं णिवेएमो पियं भे भवउ"॥४॥
कठिन शब्दार्थ - तिक्खुत्तो - तीन बार, णमंसित्ता - नमस्कार कर, णामगोयं - नाम तथा गोत्र, पुच्छंति - पूछते हैं, पधारेंति - संप्रधारित किया - आत्मसात किया, एगओ - परस्पर, मिलंति - मिलते हैं, एगंतमवक्कमंति - एकांत स्थान में जाते हैं, कंखइ - इच्छा करता है, पीहेइ - चाहता है, पत्थेइ - प्रार्थना करता है, अभिलसइ - अभिलाषा करता है, सवणयाए - सुनने से, सव्वण्णू- सर्वज्ञ, वद्धावेंति - वर्धापित करते हैं।
- भावार्थ - तब राजा श्रेणिक के वे मुख्य अधिकारीगण जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजित थे, वहाँ आए। उन्होंने प्रभु महावीर को सविधि तीन बार वंदन नमन किया। नामगोत्र पूछा, आत्मसात किया तथा वे परस्पर एकत्र होकर एकांत में गए।
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