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________________ ___एकमासिकी भिक्षु प्रतिमा ७३ ★★★★★kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ मासिकी भिक्षु प्रतिमा आराधना में उपसर्ग - मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स णिच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववजंति, तंजहा - दिव्वा वा माणुसा वा, तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पण्णे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।।२॥ कठिन शब्दार्थ - वोसट्टकाए - दैहिक सज्जा का त्याग किए हुए, चियत्तदेहे - : दैहिक आसक्ति छोड़े हुए, उवसग्गा - उपसर्ग - उपद्रव, उववजति - उत्पन्न होते हैं, उप्पण्णे - उत्पन्न, सहइ - सहन करता है, तितिक्खइ - दैन्य, दौर्बल्य के बिना, अहियासेइसहन करे। . भावार्थ - एक. मासिकी भिक्षु प्रतिमा की आराधना में संलग्न, शारीरिक सज्जा रहित, आसक्ति विवर्जित भिक्षु के यदि देव, मनुष्य या तिर्यंचविषयक उपसर्ग उत्पन्न हों तो वह सम्यक् - कर्मनिर्जरणभाव पूर्वक सहन करे, क्रोध रहित होकर क्षम्य माने तथा अदीनभाव पूर्वक उन्हें झेले। ". क्वेिचन - "श्रेयांसि बहु विघ्नानि" - श्रेयस्कर अथवा कल्याणकारी उत्तम कार्यों में अनेकानेक विघ्न आते ही रहते हैं। प्रतिमाओं की आराधना अध्यात्म साधना का. उच्च कोटि का अभ्यासक्रम है। उसमें भी अनेक विघ्न - बाधाएँ आशंकित हैं। यद्यपि यह कार्य अत्यन्त पवित्र, श्लाघनीय और अभिनंदनीय है किन्तु कुत्सितचेता, मिथ्यात्वी प्राणी ऐसे भी होते हैं, जिन्हें यह अप्रिय अमनोज्ञ प्रतीत होते हैं। मनुष्यों और पशु-पक्षियों में तो नहीं वरन् देवों में भी ऐसे अनेक होते हैं, जो साधकों के साधनामय उपक्रमों में बाधाएँ डालने में . आनंद लेते हैं। ___ उदाहरणार्थ - उपासकदशांग सूत्र में आनंद आदि श्रावकों के व्रतोपासनामय उपक्रमों में ऐसे अनेक प्रकार के उपसर्ग आए हैं। एक मासिकी भिक्षु प्रतिमा में देव, मनुष्य और तिर्यंच प्राणीकृत उपसर्गों की चर्चा हुई है। ... एकमासिकी भिक्षु प्रतिमा ... _मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पइ एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहित्तए एगा पाणगस्स, अण्णायउंछं सुद्धं उवहडं णिज्जूहित्ता बहवे दुप्पयचउप्पय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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