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प्रतिक्रमण - काल प्रतिलेखना सूत्र (चाउक्काल सज्झायस्स का पाठ)
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कठिन शब्दार्थ - चाउक्कालं - चार काल में, सज्झायस्स - स्वाध्याय के, अकरणयाए - न करने से, उभओ कालं - दोनों काल में, भण्डोवगरणस्स - भण्ड तथा उपकरण की, अप्पडिलेहणाए - अप्रतिलेखना से, दुप्पडिलेहणाए - दुष्प्रतिलेखना से, अप्पमजणाए - अप्रमार्जना से, दुप्पमजणाए - दुष्प्रमार्जना से, अइक्कमे - अतिक्रम में, वइक्कमे - व्यतिक्रम में, अइयारे - अतिचार में, अणायारे - अनाचार में।
भावार्थ - स्वाध्याय तथा प्रतिलेखना सम्बन्धी प्रतिक्रमण करता हूँ । यदि प्रमादवश दिन और रात्रि के प्रथम तथा अन्तिम प्रहर रूप चार काल में स्वाध्याय न की हो, प्रातः तथा संध्या दोनों काल में वस्त्र, पात्र आदि भण्डोपकरण की प्रतिलेखना न की हो या अच्छी तरह प्रतिलेखना न की हो, प्रमार्जना न की हो या अच्छी तरह प्रमार्जना न की हो, फलस्वरूप अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार सम्बन्धी जो भी दिवस सम्बन्धी अतिचार-दोष लगा हो तो वह सब पाप मेरे लिए मिथ्या-निष्फल हो।
विवेचन - प्रस्तुत पाठ में स्वाध्याय एवं प्रतिलेखन में लगने वाले दोषों का वर्णन किया गया है।
स्वाध्याय का अर्थ - स्वाध्याय शब्द के अनेक अर्थ हैं - १. सु + अध्याय अर्थात् सुष्ठु अध्याय - अध्ययन का नाम स्वाध्याय है। निष्कर्ष यह है कि - आत्म कल्याणकारी श्रेष्ठ पठन-पाठन रूप अध्ययन का नाम ही स्वाध्याय है।
२. सुष्ठु = भलीभांति आ = मर्यादा के साथ अध्ययन करने का नाम स्वाध्याय है।
३. स्वाध्याय यानी अपने आपका अध्ययन करना और देखभाल करते रहना कि मेरा जीवन ऊंचा उठ रहा है या नहीं?
प्रस्तुत सूत्र में स्वाध्याय का मुख्य अर्थ आगमों को मूल रूप में सीखना, सीखाना और परस्पर पुनरावर्तन करना (सुनना) है।
स्वाध्याय के भेद - स्वाध्याय के पांच भेद इस प्रकार कहे गये हैं - . १. वाचना - गुरु मुख से सूत्र पाठ ले कर, जैसा हो वैसा ही उच्चारण करना,
वाचना है। २. पृच्छना - सूत्र पर जितना भी अपने से हो सके तर्क-वितर्क चिंतन मनन करना चाहिये और ऐसा करते हुए जहां भी शंका हो गुरुदेव से समाधान के लिए पूछना, पृच्छना है। हृदय में उत्पन्न हुई शंका को शंका के रूप में ही रखना ठीक नहीं होता।
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