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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
शव्या सूत्र
(निद्रा दोष निवृति का पाठ) इच्छामि पडिक्कमिङ पगामसिज्जाए, निगामसिज्जाए, संथारा-उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण पसारणाए, छप्पइ संघट्टणाए, कूइए, कक्कराइए, छीए, जंभाइए, आमोसे, ससरक्खामोसे, आउलमाउलाए, सुवणवत्तियाए0, इत्थी( पुरिस )विप्परियासियाए, दिट्ठिविप्परियासियाए, मणविप्परियासियाए, पाणभोयणविप्परियासियाए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
कठिन शब्दार्थ - पगामसिज्जाए - चिरकाल तक सोने से, निगामसिज्जाए - बार बार चिरकाल तक सोने से, उव्वट्टणाए - करवट बदलने से, परियट्टणाए - बार-बार करवट बदलने से, आउंटण - हाथ पैर आदि को संकुचित करने से, पसारणाए - हाथ पैर आदि को फैलाने से, छप्पड़ - यूका आदि को, संघट्टणाए - स्पर्श करने से, कूइए - खांसते हुए, कक्कराइए - शय्या के दोष कहते हुए, छीए - छींकते हुए, जंभाइए. - उबासी लेते हुए, आमोसे - बिना पूंजे स्पर्श करते हुए, ससरक्खामोसे - सचित्त रज से युक्त छूते हुए, आउलमाउलाए - आकुल-व्याकुलता से, सुवणवत्तियाए - स्वप्न के निमित्त से, इत्थीविप्परियासियाए - स्त्री सम्बन्धी विपर्यास से, दिद्विविपरियासियाए - दृष्टि के विपर्यास से, मणविप्परियासियाए - मन के विपर्यास से, पाणभोयणविप्परियासियाए - पानी और भोजन के विपर्यास से।
भावार्थ - शयन सम्बन्धी प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ । शयनकाल में यदि बहुत देर तक सोता रहा हूँ अथवा बार-बार बहुत देर तक सोता रहा हूँ, अयतना के साथ एक बार करवट ली हो, अथवा बार-बार करवट ली हो, हाथ पैर आदि अंग अयतना से समेटे हों
. आचार्य हरिभद्र "सुवणवत्तिपाए" का सम्बन्ध "आउलमाउलाए" के साथ जोड़ते है । स्वप्न में विवाह युद्धादि के अवलोकन से आकुलता व्याकुलता रही हो अर्थात् स्वप्न के निमित्त से होने पाली संयम विरुद्ध मानसिक क्रिया।
- बहनें 'इत्थीविपरियासियाए' के स्थान पर 'पुरिसविप्परिपासियाए' बोलें।
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