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प्रतिक्रमण - आलोचना सूत्र
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बनाता है। माता पिता, पुत्र, पत्नी, धन वैभव आदि संसार का कोई भी पदार्थ मानव को वास्तविक रूप में शरण नहीं दे सकता है। विश्व में इस जीव के यदि कोई वास्तविक शरणदाता है तो ये चार शरण हैं - अर्हन्त, सिद्ध, साधु और केवलिप्ररूपित धर्म। इन चार का शरणा ले कर ही जीव, शिव और परमात्मा बन सकता है अत: पारमार्थिक दृष्टि से ये चार ही शरणभूत हैं।
आलोचना सूत्र इरियावहियं (इच्छाकारेणं) का पाठ चत्तारि मंगल के बाद इच्छामिठामि का पाठ बोल कर इच्छाकारणं का पाठ बोलने की विधि है अतः ऐर्यापथिक (आलोचना) सूत्र कहते हैं - - इच्छाकारेणं संदिसह भगवं । इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिडं ॥१॥ इरियावहियाए विराहणाए॥२॥ गमणागमणे ॥३॥ पाणक्कम बीयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टीमक्कडासंताणा संकमणे॥४॥ जे मे जीवा विराहिया॥५॥ एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिंदिया॥६॥ अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उहविया ठाणाओ ठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छामि दुक्कडं॥
कठिन शब्दार्थ - भगवं - हे भगवन्! हे गुरु महाराज!, इच्छाकारेणं - इच्छापूर्वक, संदिसह - आज्ञा दीजिये (कि मैं), इरियावहियं - ईर्यापथिकी क्रिया का (चलने आदि से लगने वाली क्रिया का), पडिक्कमामि - प्रतिक्रमण करूँ, इच्छं - आपकी आज्ञा प्रमाण है, इच्छामि - इच्छा करता हूँ, पडिक्कमिडं - प्रतिक्रमण करने की, इरियावहियाए - मार्ग में चलने से होने वाली, विराहणाए - विराधना से, गमणागमणे - जाने आने में, पाणक्कमणेकिसी प्राणी को दबाया हो, बीयक्कमणे - बीज को दबाया हो, हरियक्कमणे - हरी वनस्पति को दबाया हो, ओसा - ओस, उत्तिंग - कीड़ी नगरा, पणग - पाँच रंग की काई (लीलन फूलन), दग - कच्चा पानी, मही - सचित्त मिट्टी (और), मक्कडासंताणा - मकडी के जालों को, संकमणे - कुचला हो, मे - मैंने, एगिदिया' - एक इन्द्रिय वाले.
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