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आवश्यक सूत्र - तृतीय अध्ययन
होते हैं तथा 'यथाजात' व तीन गुप्तियां दोनों खमासमणो में समुच्चय होती हैं। दोनों खमासमणो में मिलाकर ये पच्चीस आवश्यक होते हैं।)
आवश्यक नियुक्ति में इस विषय को पूर्ण स्पष्ट किया गया है और कहा गया है कि पच्चीस आवश्यक से परिशुद्ध वन्दनकर्ता शीघ्र ही परिनिर्वाण प्राप्त करता है या वैमानिक देव होता है।
इच्छामि खमासमणो के पाठ से की जाने वाली वंदना, शब्द और क्रिया दोनों से बढ़ कर है इसलिये भी इसे उत्कृष्ट वंदना कहते हैं।
प्रस्तुत सूत्र में आये कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैं -
इच्छामि - खमासमणो देने की विधि हृदय की स्वतंत्र भावना है बलात् नहीं। यह इच्छामि शब्द का अर्थ है। अथवा मेरी वंदना करने की इच्छा है। आप उचित समझें तो आज्ञा दीजिए। 'दिउँ - एत्थं वंदितुमित्यावेदनेन अप्पच्छंदता परिहरिता।' .
अर्थात् - यहाँ पर इस प्रकार के निवेदन के द्वारा आत्म छंद अर्थात् स्वयं की स्वच्छंदता का परिहार किया गया है।
खमासमणो (क्षमाश्रमण) - क्षमादि गुणों से प्रधान श्रमण - क्षमा-श्रमण। अतः इस शब्द के द्वारा शिष्य अपराधों के प्रति क्षमा दान प्राप्त करने की भावना व्यक्त करता है।
यापनीय - संस्कृत में 'या प्रापणे' धातु है, जिसके अनीथ प्रत्यय लग कर यापनीय शब्द बना है। जिसका अर्थ निर्वाह योग्य होता है। अतः यापनीय कहने का अभिप्राय यह है कि मैं अपने पवित्र भाव से वंदन करता हूँ मेरा शरीर वंदन करने की सामर्थ्य रखता है अतः किसी दबाव से गिरी पड़ी हालत में वंदन करने नहीं आया हूँ अपितु वंदना की भावना से उत्फुल्ल एवं रोमांचित हुए सशक्त शरीर से वंदना के लिए तैयार हुआ है। जिसका अर्थ यहाँ पर यह है कि स्वस्थ मन और पाँचों इन्द्रियों सहित धर्म कार्य करने में समर्थ शरीर।
निसीहियाए (नैषेधिकी) - मूल शब्द निसीहिया है इसका संस्कृत रूप नैषेधिकी होता है। प्राणातिपातादि से निवृत्त बने हुए शरीर को नैषैधिकी कहते हैं। आचार्य हरिभद्रसूरि कहते हैं - निषेधन - निषेधः निषेधन निर्वृत्ता नैषधिकी प्राकृत शैल्या छांदसत्वाद् नैषेधिकेत्युच्यते....नषेधिक्या प्राणातिपातादि निवृत्तया तन्वा शरीरेणेत्यर्थः। __आचार्य जिनदास नैषेधिकी के शरीर, वसति स्थान और स्थण्डिलभूमि - इस तरह तीन अर्थ करते हैं। मूलतः नैषेधिकी शब्द आलय स्थान का वाचक है। शरीर भी जीव का आलय
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