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आवश्यक सूत्र - द्वितीय अध्ययन
सम्यग्दर्शनादि का पूर्णलाभ तथा सर्वोत्कृष्ट समाधि प्रदान करे। जो चन्द्रमाओं से भी विशेष निर्मल हैं, सूर्यों से भी अधिक प्रकाशमान हैं और जो स्वयंभूरमण जैसे महासमुद्र के समान गंभीर हैं, ऐसे सिद्ध भगवान् मुझे सिद्धि (मुक्ति) देवें।
विवेचन - प्रस्तुत पाठ में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गयी है इसीलिये इसे 'चतुर्विंशतिस्तव का पाठ' कहते हैं। ये चौबीस ही तीर्थंकर हमारे परम आराध्य है। वे हमारी श्रद्धा के केन्द्र हैं। अत: उनकी स्तुति करने से हमें भी श्रद्धेय के समान बनने की प्रेरणा मिलती है। इसलिए ये हमारे जीवन को उच्च बनाने में आलंबनभूत हैं।
लोगस्स के पाठ में अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थंकरों का नाम स्मरण किया गया है। चउवीसपि में 'अपि' शब्द से महाविदेह क्षेत्र के विहरमान तीर्थंकरों का. भी ग्रहण हो
जाता है।
• महापुरुषों के गुण स्मरण से होने वाले लाभ इस प्रकार हैं -
१. महापुरुषों का स्मरण हमारे हृदय को पवित्र बनाता है। २. वासनाओं की अशांति को दूर कर अखंड आत्मशांति का आनंद देता है। ३. प्रभु का मंगलमय पवित्र नाम अंतरात्मा में ज्ञान का प्रकाश फैलाता है।
४. मनुष्य जैसी श्रद्धा करता है, जैसा ध्यान संकल्प और चिंतन करता है वैसा ही बन जाता है अत: महापुरुषों का नाम लेने से अन्य सभी विषयों से हमारा ध्यान हट जायेगा और हमारी बुद्धि महापुरुष विषयक बन जायेगी।
५. महापुरुषों का नाम स्मरण आत्मा से परमात्मा बनने का पथ है, जीवन को सरस, सुंदर और सबल बनाने का प्रबल साधन है।
प्रस्तुत सूत्र में आये कुछ विशिष्ट शब्दों के विशेष अर्थ इस प्रकार हैं -
धम्मतित्थयरे (धर्म तीर्थंकर) - इसमें दो शब्द हैं - धर्म और तीर्थंकर। धर्म शब्द का अर्थ इस प्रकार किया गया है -
दुर्गुतौ प्रपततः जीवान् यस्माद् धारयते ततः।
धत्ते चैतान् शुभे स्थाने, तस्मादधर्म इति स्मृतः॥ .. अर्थात् - दुर्गति में पड़ते हुए जीवों को दुर्गति से बचा कर सद्गति में पहुंचावे, उसे धर्म कहते हैं।
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