SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवश्यक सूत्र - द्वितीय अध्ययन होने से समकित की विशुद्धि तथा जन्मान्तर में भी बोधिलाभ और संपूर्ण कर्मों के नाश के कारण होने से परम उपकारी तीर्थंकर भगवंतों का लोगस्स के पाठ से गुणकीर्त्तन करते हैं । चतुर्विंशतिस्तव सूत्र (लोगस्स का पाठ) ४० लोगस्स उज्जोयगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । अरहंते* कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली ॥ १॥ उसभमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥ २ ॥ सुविहिं च पुप्फदंतं, सीयलसिज्जंस - वासुपुज्जं च । विमलमणतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥ ३ ॥ कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥ ४ ॥ एवं मए अभित्थुआ विहुयरयमला पहीणजरमरणा । चवीस पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥ ५ ॥ कित्तियवंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्गबोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥ ६॥ चंदेसु णिम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ ७॥ कठिन शब्दार्थ - लोगस्स - लोक का, उज्जोयगरे उद्योत करने वाले, धम्मतित्थयरेधर्म रूप तीर्थ की स्थापना करने वाले, जिणे- जिन राग-द्वेष को जीतने वाले, अरहंते अरहंतों ( कर्मशत्रुओं का नाश करने वालों) को, चउवीसंपि - चौबीस ही, केवली केवलज्ञानियों की, कित्तइस्सं स्तुति करूँगा, उसभं - श्री ऋषभदेवस्वामी को, अजियं और, वंदे - वन्दना करता हूँ संभवं श्री संभवनाथ को, अभिनंदणं - श्री अभिनन्दन स्वामी को, सुमई- श्री सुमतिनाथ को, पउमप्पहं - श्री पाठान्तर - * अरिहंते * अभिथुआ श्री अजितनाथ को, च Jain Education International - - - For Personal & Private Use Only - - - www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy