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आवश्यक सूत्र - प्रथम अध्ययन
१८. पतन - राजा, मंत्री आदि प्रमुख व्यक्ति की मृत्यु होने पर उस नंगरी में जब तक . शोक रहे और नया राजा स्थापित न हो तब तक अस्वाध्याय काल समझना चाहिए और जब हो जाए तो एक अहोरात्र तक अस्वाध्याय काल समझना चाहिए।
१९. राजा-व्युद्ग्रह - जहाँ राजाओं का युद्ध चल रहा हो उस स्थल के निकट अस्वाध्याय काल रहता है तथा युद्ध समाप्त होने के बाद एक अहोरात्रि तक अस्वाध्याय काल रहता है।
२०. औदारिक कलेवर - उपाश्रय में मृत मनुष्य का शरीर पड़ा हो तो १०० हाथ के भीतर तथा तिर्यंच पंचेन्द्रिय का मृत कलेवर ६० हाथ के भीतर हो तो जब तक वह रहे तब तक अस्वाध्याय काल गिनना चाहिए।
• मृत या भग्न अण्डे का तीन प्रहर तक (या जब तक रहे तब तक) अस्वाध्याय गिना जाता है।
औदारिक सम्बन्धी अशुचि पदार्थों के बीच राजमार्ग हो तो अस्वाध्याय नहीं होता है। : यह औदारिक सम्बन्धी दस अस्वाध्याय हुए।
चन्द्रग्रहण-सूर्यग्रहण को औदारिक अस्वाध्याय में इसलिए गिना है कि उनके विमान पृथ्वीकाय के बने होते हैं। .
२१-२८. आषाढ़, आश्विन, कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमा एवं इनके बाद आने वाली (श्रावण, कार्तिक, मिगसर एवं वैशाख की) प्रतिपदा (एकम) को अहोरात्र का अस्वाध्याय रहता है। क्योंकि इन चार पूर्णिमा को इन्द्र महोत्सव, स्कन्ध महोत्सव, यक्ष महोत्सव और भूत महोत्सव मनाए जाते हैं। इन महोत्सव में लोग अपनी मान्यतानुसार इन्द्रादि का पूजन करते हैं एवं देवों को आह्वान करते हैं तथा इनके बाद आने वाली प्रतिपदा को अपने मित्र आदि को बुलाते और मदिरा पान सहित भोजनादि करते हैं। मदोन्मत्त बने लोग साधु-साध्वियों को स्वाध्याय करते देख कर भड़क सकते हैं और मदिरा आदि से उन्मत्त बने होने के कारण कोई उपद्रव भी कर सकते है। इसलिए प्रतिपदा को भी स्वाध्याय का परिहार करते हैं। . ___ नोट - निशीथ टब्बे की प्रतियों में आश्विन के बदले भाद्रपद की महाप्रतिपदा को अस्वाध्याय माना है। इसलिए भाद्रपद पूर्णिमा और आसोज वदी प्रतिपदा इन दोनों अस्वाध्यायों को ३२ अस्वाध्यायों में मिलाकर ३४ अस्वाध्याय भी गिनते हैं। किन्तु निशीथ
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