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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट तृतीय
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जब तक प्रतिक्रमण के द्वारा पापों की आलोचना करके चित्त शुद्धि न की जाय, तब तक धर्म ध्यान के लिये एकाग्रता सम्पादन करने का, जो कायोत्सर्ग का उद्देश्य है, वह सिद्ध नहीं हो सकता। अतः आलोचना के बाद कायोत्सर्ग आवश्यक रखा गया है।
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जो साधक कायोत्सर्ग के द्वारा विशेष चित्त शुद्धि, एकाग्रता और आत्मबल प्राप्त करता है वही प्रत्याख्यान का सच्चा अधिकारी है । प्रत्याख्यान सबसे ऊपर की आवश्यक क्रिया है । उसके लिये विशिष्ट चित्त शुद्धि और विशेष उत्साह की अपेक्षा है, जो कायोत्सर्ग के बिना पैदा नहीं हो सकते। इसी विचारधारा को सामने रख कर कायोत्सर्ग के पश्चात् प्रत्याख्यान का क्रम आता है।
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॥ तृतीय परिशिष्ट समाप्त ॥
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