________________
आवश्यक सम्बन्धी विशेष विचारणा - आवश्यक के भेद
२६९
द्रत्यावश्यक - द्रव्यावश्यक के दो भेद हैं - १. आगमतो द्रव्यावश्यक २. नो आगमतो द्रव्यावश्यक।
१. आगमतो द्रव्यावश्यक - जस्स णं आवस्सए ति पयं (१) सिक्खियं (२) ठियं (3) जियं (४) मियं (५) परिजियं (E) नामसम (७) घोससमं (८) अहीणक्खरं (९) अणच्चक्खरं (१०) अव्वाइद्धक्खरं (११) अक्खलियं (१२) अमिलियं (१3) अवच्चामेलियं (१४) पडिपुणं (१५) पडिपुण्ण घोसं (१६) कठोट्ठविप्पमुक्कं (१७) गुरुवायणोवगर्य, से णं तत्थ (१८) वायणाए (१९) पुच्छणाए (20) परियट्टणाए (२१) धम्मकहाए णो अणुप्पेहाए, कम्हा? अणुवओगो दव्वमितिकटु। (अनुयोगद्वार सूत्र १३)
अर्थात् - जिस किसी ने आवश्यक ऐसा पद अर्थात् आवश्यक का अर्थाधिकार शुद्ध सीखा है, स्थिर किया है, पूछने पर शीघ्र उत्तर दिया है, पद अक्षर की संख्या का सम्यक् प्रकार से जानपना किया है, आदि से अन्त तथा अन्त से आदि तक पढ़ा है, अपने नाम सदृश पक्का किया है, उदात्तानुदात्तादि घोष सहित, अक्षर, बिन्दु, मात्रा हीन नहीं, अक्षर, बिन्दु, मात्रा अधिक नहीं, अधिक अक्षर तथा उलट पुलटकर न बोले हों, बोलते समय अटके नहीं हो, मिले हुए अक्षर नहीं बोले हों, एक पाठ को बार-बार नहीं बोला हो, सूत्र सदृश पाठ को अपने मन से बना कर सूत्र से जोड़ कर नहीं बोला हो, काना मात्रादि परिपूर्ण हो, काना मात्रादि परिपूर्ण घोष सहित हो, कण्ठ ओष्ठ से न मिला हुआ यांने स्फुट (प्रकट) हो, गुरु की दी हुई वाचना से पढ़ा हो, दूसरों को वाचना देता हो, प्रश्न पूछता हो, बारंबार याद करता हो, धर्मोपदेश देता हो, इन इक्कीस बोलों सहित है परन्तु उसमें उपयोग नहीं है उसे आगम से द्रव्यावश्यक कहते हैं क्योंकि जो उपयोग रहित होता है वह द्रव्यावश्यक कहा जाता है।
नैगमनय के मत से एक पुरुष उपयोग रहित आवश्यक करे तो एक द्रव्यावश्यक, दो पुरुष करे तो दो द्रव्यावश्यक इत्यादि जितने पुरुष उपयोग रहित आवश्यक करें उनको उतने ही द्रव्यावश्यक कहता है। इसी प्रकार व्यवहार नय भी कहता है। संग्रह नय के मत से एक पुरुष या बहुत पुरुष उपयोग रहित आवश्यक करे उन सब को आगम से एक द्रव्यावश्यक कहते हैं। ऋजु सूत्र नय के अभिप्राय से एक पुरुष उपयोग रहित आवश्यक करे उसे एक द्रव्यावश्यक परन्तु जुदे-जुदे उपयोग रहित आवश्यक करने वालों को यह नय आगम से द्रव्यावश्यक नहीं मानता है, क्योंकि यह नय अतीत अनागत को छोड़ कर केवल वर्तमान को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org