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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट तृतीय .00000000000000000000000000000000000000000000000000000000..
(ए) आराहणा (आराधना) - मोक्ष की आराधना का हेतु होने से आराधना है। (ऐ) मग्गो (मार्ग) - मोक्षपुर का प्रापक (मार्ग-उपाय) होने से मार्ग है।
३.आवश्यक के ६ प्रकार अनुयोगद्वार सूत्र में आवश्यक के छह प्रकार बताये गये हैं - सामाइयं, चउवीसत्यओ, वंदणय, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं। .
१. सामायिक - समभाव (समता) की साधना। २. चतुर्विंशतिस्तव - वीतराग देव की स्तुति। ३. वन्दन - गुरुदेवों को वन्दन। ४. प्रतिक्रमण - संयम में लगे दोषों की आलोचना। ५. कायोत्सर्ग - शरीर के ममत्व का त्याग।
६. प्रत्याख्यान - नये व्रतों का ग्रहण। जैसे - चौविहार, नवकारसी, पौरुषी आदि का ग्रहण।
अनुयोगद्वार सूत्र में छह आवश्यकों के अधिकार का उल्लेख किया गया है। वह इस प्रकार है -
सावज्जजोग-विरई, उक्कित्तणं गुणवओ य पडिवत्ती। खलियस्स निंदणा, वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव॥
१. सावजजोगविरई (सावद्य योग विरति) - प्राणातिपात, असत्य आदि सावद्य योगों का त्याग करना। सावध व्यापारों का त्याग करना ही सामायिक है।
२. उक्क्त्तिणं (उत्कीर्तन) - तीर्थंकर देव स्वयं कर्मों को क्षय करके शुद्ध हुए हैं और दूसरों को आत्मशुद्धि के लिये सावध योग विरति का उपदेश दे गये हैं। अत: उनके गुणों की स्तुति करना उत्कीर्तन है। यह चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का अर्थाधिकार है। ____३. गुणवओ य पडिवत्ती (गुणवत्प्रतिपत्ति) - अहिंसादि पाँच महाव्रतों के धारक संयमी गुणवान् हैं, उनकी वन्दनादि के द्वारा उचित प्रतिपत्ति करना गुणवत्पत्ति है। यह वन्दन आवश्यक का अर्थाधिकार है। ___४. खलियस्स निंदणा (स्खलित निन्दना) - संयम क्षेत्र में विचरण करते हुए साधक से प्रमादादि के कारण स्खलनाएं हो जाती हैं, उनकी शुद्ध बुद्धि से संवेग की परमोत्तम
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