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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय
अनाभोगिक मिथ्यात्व एकेन्द्रिय आदि असंज्ञी जीवों को तथा ज्ञान विकल जीवों को होता है। अज्ञान के गाढ़ अंधकार में पड़े हुए जीवों को यह मिथ्यात्वं लगता है। जिन जीवों को किसी भी प्रकार के मत का पक्ष नहीं होता है और जो धर्म-अधर्म का विचार ही नहीं कर सकते, वे अनाभोगिक मिथ्यात्वी हैं।
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१६. लौकिक मिथ्यात्व - लौकिक देव देवियों को तारक देव, लौकिक गुरु (कलाचार्य आदि) को तारक गुरु और लौकिक धर्म ( ग्राम धर्म आदि) को सही तारक धर्म समझना लौकिक मिथ्यात्व है ।
१७. लोकोत्तर मिथ्यात्व - लोकोत्तर देव, गुरु, धर्म से सांसारिक (भौतिक) वस्तुओं की चाह ( याचना) करना लोकोत्तर मिथ्यात्व कहलाता है।
१८. कुप्रावचनिक मिथ्यात्व - दर्शनान्तरीय (अन्यमतों वाले) प्रवर्तकों को सुदेव, इन मत के गुरुओं को सुगुरु एवं इन धर्मों का सुधर्म समझना कुप्रावचनिक मिथ्यात्व है। शंका- लौकिक, लोकोत्तर और कुप्रावचनिक कौन-कौन से हैं?
समाधान - लौकिक देव - भैरव, भवानी, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गुणशिलक, पूर्णभद्र, मुद्गरपाणि यक्ष आदि । लौकिक गुरु वंशावली आदि लिखने वाले भाट, चारण आदि कुलगुरु एवं कलाचार्य शिक्षक आदि । लौकिक धर्म ग्राम धर्म, नगर धर्म, राष्ट्र धर्म, समाज, न्याति आदि की व्यवस्थाएं ।
लोकोत्तर देव
आत्म-कल्याणकारी धर्म प्रवर्तक देव अर्हन्त (तीर्थंकर) सिद्ध
भगवान् । । लोकोत्तर गुरु तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा में चलने वाले - निर्ग्रन्थ साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, सम्यग्दृष्टि । लोकोत्तर धर्म - अर्हन्त ( तीर्थंकर) प्रणीत अहिंसा, संयम, तप के लक्षण वाला निर्ग्रन्थ प्रवचन |
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कुप्रावचनिक देव - ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, बुद्ध, गोशालक यीशु, कबीर, मोहम्मद आदि । कुप्रावचनिक गुरु- परिव्राजक, संन्यासी, तापस, बौद्ध भिक्षु (दलाई लामा) पादरी, मुल्ला, आजीवक भिक्षु, ब्रह्माकुमारी, वैदिक धर्म के आचार्य आदि । कुप्रावचनिक धर्म उपर्युक्त कुप्रावनिक देव गुरु की मान्यता विधि - विधान आदि ।
१९. जिन धर्म से न्यून श्रद्धे तो मिथ्यात्व - जिनेश्वर भगवान् द्वारा प्ररूपित सिद्धान्त से कुछ भी कम मानना, इसी प्रकार प्ररूपणा तथा फरसना में कमी करना, न्यून करण मिथ्यात्व है।
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