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________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - उपभोग परिभोग परिमाण व्रत २३३ जगह भाड़े से ले जाना। बैल, घोड़े आदि किराये पर देना और मकान आदि बना कर भाड़े पर देना इत्यादि धंधे करके आजीविका करना "भाटी कर्म" है। ५. फोडीकम्मे (स्फोटिक कर्म) - हल कुदाली आदि से भूमि फोड़ना। इस प्रकार का धंधा करके आजीविका करना "स्फोटिक कर्म" है। ____६. दंतवाणिजे (दंत वाणिज्य) - हाथीदांत, मृग आदि का चर्म (मृगछाला आदि) चमरी गाय के केशों से बने हुए चामर और भेड़ के केश - ऊन आदि को खरीदने और बेचने का धंधा करके आजीविका करना "दंत वाणिज्य" है। ७. लक्खवाणिजे (लाक्षा वाणिज्य) - लाख का क्रय-विक्रय करके आजीविका करना "लाक्षावाणिज्य" है। इसमें त्रस जीवों की महाहिंसा होती है। इसी प्रकार त्रस जीवों की उत्पत्ति के कारण भूत तिलादि द्रव्यों का व्यापार करना भी इसी में सम्मिलित है। . ८. केसवाणिजे (केशवाणिज्य) - केश वाले जीवों का अर्थात् गाय, भैंस आदि पशु तथा दासी आदि को बेचने का व्यापार करना "केश वाणिज्य" है। ९. रस वाणिज्जे (रस वाणिज्य) - मदिरा आदि रसों को बेचने का धंधा करना "रस वाणिज्य" है। १०. विसवाणिज्जे (विष वाणिज्य) - विष (अफीम, शंखिया आदि जहर) को बेचने का धंधा करना "विष वाणिज्य" है। जीव घातक तलवार आदि शस्त्रों का व्यापार करना भी इसी में सम्मिलित है। ___११. जंतपीलणकम्मे (यंत्रपीडन कर्म) - तिल, ईख आदि पीलने के यंत्र - कोल्हू, चरखी आदि से तिल ईख आदि पीलने का धंधा करना "यंत्रपीडन कर्म" है। उसी प्रकार महारम्भपोषक जितने भी यंत्र हैं उन सबका समावेश यंत्रपीडन कर्म में होता है। १२. निल्लंछणकम्मे (निलांछनकर्म) - बैल, घोड़े आदि को खसी (नपुंसक) बनाने का धंधा करना "निलांछन कर्म" है। १३. दवग्गिदावणया (दावाग्निदापनता) - खेत आदि साफ करन के लिए जंगल में किसी से आघ लगवा देना अथवा स्वयं लगाना दावाग्निदापनता है। इसमें असंख्य त्रस और अनंत स्थावर जीवों की हिंसा होती है। ___१४.सरदहतलायपरिसोसणया (सरोहृदतडागपरिशोषणता) - स्वतः बना हुआ जलाशय 'सरोवर' कहलाता है। नदी आदि में जो अधिक गहरा प्रदेश होता है उसे 'हृद' कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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