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________________ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय 3 अचौर्य अणुव्रत तीसरा अणुव्रत - थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं - खात खन कर, गांठ खोलकर, ताले पर कूंची लगा कर, मार्ग में चलते हुए को लूट कर पड़ी हुई किसी के अधिकार की बड़ी वस्तु चोरी की भावना से लेना इत्यादि बड़ा अदत्तादान का पंच्चक्खाण, सगे सम्बन्धी, व्यापार सम्बन्धी तथा पड़ी निर्भमी वस्तु के उपरान्त अदत्तादान का पच्चक्खाण जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा एवं तीसरा व्रत स्थूल अदत्तादान विरमण के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा ते आलोऊँ - तेनाहडे, तक्करप्पओगे, विरुद्धरज्जाइक्कमे, कूडतुल्ल-कूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे, जो में देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कड़ | कठिन शब्दार्थ - अदिण्णादाणाओ अदत्तादान (चोरी) से, निर्भ्रमी - शंका रहित, तेनाहडे - चोर की चुराई वस्तु ली हो, तक्करप्पओगे - चोर को सहायता दी हो, विरुद्धरज्जाइक्कमे - राज्य विरुद्ध काम किया हो, कूडतुल्लकूडमाणे कूड़ा (खोटा) तोल कूड़ा माप किया हो, तप्पडिरूवगववहारे वस्तु में भेल संभेल की हो । भावार्थ - मैं किसी के मकान में खात लगा कर अर्थात् भींत फोड़ कर, गांठ खोल कर, ताले पर कूंची लगा कर अथवा ताला तोड़ कर किसी की वस्तु नहीं लूँगा । मार्ग में चलते हुए किसी को नहीं लुटूंगा । मार्ग में पड़ी हुई किसी मोटी वस्तु का स्वामी जानते हुए उसे नहीं लूंगा इत्यादि रूप से सगे संबंधी, व्यापार संबंधी तथा पड़ी हुई शका रहित वस्तु के उपरांत स्थूल चोरी मन, वचन, काया से नहीं करूँगा और न कराऊँगा । यदि मैंने चोरी की वस्तु ली हो, चोर को सहायता दी हो, राज्य विरुद्ध कार्य किया हो, झूठा तोल या माप किया हो, वस्तु में भेल-संभेल ( मिटावट) की हो उत्तम वस्तु दिखा कर खराब वस्तु दी हो तो मैं इन बुरे कामों की आलोचना करता हूँ और चाहता हूँ कि मेरे वे सब पाप निष्फल हों । विवेचन - किसी भी वस्तु को उसके स्वामी की आज्ञा के बिना लेना अदत्तादान - चोरी है । तीसरे व्रत में मुख्य पांच प्रकार की बड़ी चोरी का त्याग होता है । पांच प्रकार की चोरी इस प्रकार हैं- १. सेंध लगाना २. गांठ खोलना अर्थात् जेब काटना, पॉकिट उड़ा लेना आ २२२ Jain Education International - - For Personal & Private Use Only - *********** www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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