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श्रमण आवश्यक सूत्र - पाँच पदों की वंदना
५. पांचवे पद ‘णमो लोए सव्वसाहूणं' ढाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र रूप लोक में सर्व साधुजी महाराज जघन्य दो हजार करोड उत्कृष्ट नव हजार करोड जयवन्ता विचरे। पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावायाओ वेरमणं, अदिण्णादाणाओ बेरमणं, मेहुणाओ वेरमणं, परिग्गहाओ वेरमणं, सोइंदिय निग्गहे, चक्खिंदिय निग्गहे, घाणिंदिय निग्गहे, जिब्भिंदिय निग्गहे, फासिंदिय निग्गहे, कोहविवेगे, माणविवेगे, मायाविवेगे, लोहविवेगे, भावसच्चे, करणसच्चे, जोगसच्चे, खमा, विरागया, मणसमाहरणया, वयसमाहरणया, काय समाहरणया, णाणसंपण्णया, दंसणसंपण्णया, चरित्तसंपण्णया, वेयणअहियासणया, मारणंतियअहियासणया, ऐसे सत्ताईस गुण करके सहित हैं। पाँच आचार पाले, छहकाय की रक्षा करे, सात भय छोड़े, आठ मद छोड़े, नववाड सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य पाले, दस प्रकारे यति धर्म धारे, बारह भेदे तपस्या करे, सतरह भेदे संयम पाले, अठारह पापों को त्यागे, बाईस परीषह जीते, तीस महामोहनीय कर्म निवारे, तेतीस आशातना टाले, बयालीस दोष टालकर आहार पानी आदि लेवे, ४७ दोष टालकर भोगे, बावन अनाचार टाले, बुलाया आवे नहीं, नेतिया जीमे नहीं, सचित्त के त्यागी, अचित्त के भोगी, लोच करे, नंगे पैर चले इत्यादि कायोक्लेश करे और मोह ममता रहित हैं।
ऐसे मुनिराज महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे मुनिराज महाराज! मेरा अपराध क्षमा करिये। हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से १००८ बार वंदना नमस्कार करता हूँ।
तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि। . आप मांगलिक हो, उत्तम हो, हे स्वामिन्! हे नाथ! आपका इस भव, परभव, भवभव में सदाकाल शरण हो।
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